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अखाड़े: संतों के आध्यात्मिक संगठनों का महत्व

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जब हम “अखाड़ा” शब्द सुनते हैं, तो हमारे मन में पहलवानों और उनके मल्ल युद्ध की छवियां उभर आती हैं। लेकिन आध्यात्मिक क्षेत्र में भी अखाड़े संतों का एक महत्वपूर्ण स्थान है। जैसे कि निर्मोही अखाड़ा, जूना अखाड़ा और शंभू पंच दशनाम अखाड़ा, ये सभी संतों के अखाड़े हैं जो अक्सर चर्चा में रहते हैं। इन अखाड़ों के संत महाकुंभ 2025 के अवसर पर पहुंचे हुए हैं, और उनके अस्थायी आश्रम बन गए हैं। करोड़ों श्रद्धालु महाकुंभ में विभिन्न अखाड़ों में जाकर संतों का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते हैं।

यहां यह सवाल उठता है कि संतों के आश्रमों को “अखाड़ा” क्यों कहा जाता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि “अखाड़ा” का अर्थ “अखंड” से है। दरअसल, “अखंड” शब्द समय के साथ अपभ्रंश होकर “अखाड़ा” बन गया। इसका आध्यात्मिक भाव यह है कि जो विभाजित नहीं हो सकता।

आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए साधुओं के संघों को एकजुट करने का प्रयास किया। इसी प्रयास के तहत विभिन्न अखाड़ों की स्थापना की गई, ताकि विभिन्न परंपराओं और विश्वासों को एक साथ लाया जा सके और धार्मिक परंपराओं को संरक्षित रखा जा सके।

अखाड़ों के सदस्यों की विशेषता होती है कि वे शास्त्र और शस्त्र दोनों में पारंगत होते हैं। अखाड़ा सामाजिक व्यवस्था, एकता, संस्कृति और नैतिकता का प्रतीक है। अखाड़ों का मुख्य उद्देश्य समाज में आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना करना है।

धर्म गुरुओं के चयन में यह ध्यान रखा जाता है कि उनका जीवन सदाचार, संयम, परोपकार, कर्मठता, दूरदर्शिता और धर्ममय हो। भारतीय संस्कृति और एकता में अखाड़ों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जबकि ये अलग-अलग संगठनों में विभक्त होते हैं, फिर भी अखाड़े एकता के प्रतीक बने रहते हैं।

नागा संन्यासी अखाड़ा मठों का एक विशिष्ट प्रकार है, जहां प्रत्येक नागा संन्यासी किसी न किसी अखाड़े से संबंधित होता है। ये संन्यासी शास्त्रों के ज्ञाता होते हैं और शस्त्र चलाने में भी सक्षम होते हैं।

वर्तमान में, अखाड़ों को उनके इष्ट देव के आधार पर तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

  1. शैव अखाड़े: इनका इष्ट भगवान शिव है और ये शिव के विभिन्न स्वरूपों की आराधना करते हैं।
  2. वैष्णव अखाड़े: इनका इष्ट भगवान विष्णु है और ये विष्णु के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करते हैं।
  3. उदासीन अखाड़ा: इस पंथ के अनुयाई “ॐ” की उपासना करते हैं, और इसे सिक्ख सम्प्रदाय के आदि गुरु श्री नानक देव के पुत्र श्री चंद्र देव जी का अनुयायी माना जाता है।

इस प्रकार, अखाड़े न केवल संतों के संगठनों का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि समाज में आध्यात्मिकता, नैतिकता और एकता को भी बढ़ावा देते हैं।