लोकसभा में पेश हुआ “वन नेशन, वन इलेक्शन” बिल
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के अपने पुराने वादे की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। मंगलवार, 17 दिसंबर, को संसद के निचले सदन लोकसभा में “वन नेशन, वन इलेक्शन” को लागू करने के लिए संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 और संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किए गए।
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इन विधेयकों को पेश करते हुए कहा कि देशव्यापी चुनावों को एक साथ कराना समय की जरूरत है। हालांकि विपक्षी दलों ने इस बिल का जोरदार विरोध किया और इसे लोकतंत्र विरोधी करार दिया।
सरकार ने फिलहाल कहा है कि इस बिल पर विस्तृत विचार-विमर्श के लिए इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जाएगा।
विपक्ष का तर्क: चुनाव आयोग को मिलेगी ‘बेतहाशा ताकत’
विपक्षी दलों का मानना है कि इस बिल के लागू होने से चुनाव आयोग को अत्यधिक शक्तियां मिल जाएंगी।
- कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने कहा कि यह विधेयक संविधान और नागरिकों के मतदान अधिकार पर आक्रमण है।
- उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 324 के तहत निर्वाचन आयोग की सीमाएं निर्धारित हैं, लेकिन इस बिल से आयोग को असंवैधानिक ताकतें दी जा रही हैं।
गोगोई ने यह सवाल उठाया कि “क्या इससे चुनाव आयोग का दुरुपयोग नहीं होगा?”
संविधान में नए अनुच्छेद 82A का प्रावधान
“वन नेशन, वन इलेक्शन” के तहत संविधान के तीन मौजूदा अनुच्छेदों में संशोधन किया जाएगा और अनुच्छेद 82A जोड़ा जाएगा।
अनुच्छेद 82A का उद्देश्य:
- लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना।
- राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को लोकसभा के कार्यकाल के साथ समायोजित करना।
अनुच्छेद 82A के प्रमुख प्रावधान
- समान चुनाव की व्यवस्था:
- लोकसभा के चुनाव के बाद सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे।
- इसके लिए कुछ राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को घटाया जा सकता है ताकि समान चुनाव संभव हो सके।
- चुनाव आयोग की भूमिका:
- चुनाव आयोग चुनावों की तिथि और समय का निर्धारण करेगा।
- यदि किसी कारणवश चुनाव आयोग किसी राज्य विधानसभा का चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ नहीं करा पाता, तो वह राष्ट्रपति से अनुमति लेकर चुनाव को बाद की तारीख पर आयोजित कर सकता है।
- कार्यकाल का समायोजन:
- यदि कोई विधानसभा चुनाव स्थगित होता है, तो उसका कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल की समाप्ति के साथ खत्म होगा।
- चुनावी प्रक्रिया में लचीलापन:
- चुनाव आयोग को समय और परिस्थितियों के अनुरूप निर्णय लेने की स्वतंत्रता होगी।
विपक्ष के आरोप: चुनाव आयोग को ‘अनुचित शक्तियां’ मिलेंगी
- बिल के प्रावधानों के मुताबिक, चुनाव आयोग के पास यह अधिकार होगा कि वह चुनाव कार्यक्रम में बदलाव कर सके।
- विपक्ष का कहना है कि इससे चुनाव आयोग के पास बहुत अधिक शक्ति आ जाएगी और चुनावी प्रक्रियाओं का राजनीतिक दुरुपयोग संभव हो सकता है।
संभावित असर: राज्यों के कार्यकाल पर प्रभाव
अगर यह विधेयक लागू होता है, तो कुछ राज्यों की विधानसभाओं के कार्यकाल को समायोजित करने की जरूरत पड़ेगी।
- राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनावों के साथ कराए जाएंगे।
- इससे कई राज्यों के विधानसभा कार्यकाल को कम करना पड़ सकता है, जो विपक्ष के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
“वन नेशन, वन इलेक्शन” का उद्देश्य
सरकार का कहना है कि इस व्यवस्था से:
- चुनावी खर्च में कमी आएगी।
- संसाधनों की बचत होगी।
- देश में चुनावी स्थिरता आएगी।
- बार-बार होने वाले चुनावों से विकास कार्यों में आने वाली बाधाएं खत्म होंगी।