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1999: जब एक वोट से गिर गई थी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार

Omprakash Chautala With Advani 1

साल 1999 भारतीय राजनीति में यादगार घटनाओं से भरा रहा। अटल बिहारी वाजपेयी, जो दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने थे, उनकी सरकार समता पार्टी (नीतीश कुमार), तृणमूल कांग्रेस (ममता बनर्जी) और AIADMK (जयललिता) के समर्थन पर निर्भर थी। हालांकि, यह गठबंधन ज्यादा समय तक टिक नहीं सका। जयललिता की ओर से लगातार बढ़ते दबाव और अंततः समर्थन वापस लेने की वजह से वाजपेयी सरकार महज 13 महीने में गिर गई।

जयललिता का समर्थन वापसी का निर्णय

तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता केंद्र सरकार पर अपने दो बड़े एजेंडे लागू करने का दबाव डाल रही थीं:

  1. अपने खिलाफ आपराधिक मामलों को वापस लेना।
  2. तमिलनाडु में करुणानिधि सरकार को बर्खास्त करना।

जब यह मांगें पूरी नहीं हुईं, तो 6 अप्रैल 1999 को AIADMK के सभी मंत्रियों ने अपने इस्तीफे प्रधानमंत्री को सौंप दिए। दो दिन बाद, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ये इस्तीफे राष्ट्रपति के. आर. नारायणन को भेज दिए।

11 अप्रैल 1999 को, जयललिता ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर अटल सरकार से समर्थन वापस लेने की आधिकारिक घोषणा कर दी। इसके बाद, राष्ट्रपति ने वाजपेयी सरकार को लोकसभा में बहुमत साबित करने का निर्देश दिया।

बहुमत बचाने की कोशिशें

प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उनके सहयोगी पहले ही समझ चुके थे कि जयललिता समर्थन वापस लेने वाली हैं। ऐसे में, उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला से मदद मांगने का निर्णय लिया।

आडवाणी ने अपने करीबी सहयोगी और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना को चौटाला से बात करने के लिए भेजा। चौटाला, जो उस समय जिंद में थे, ने खुराना को कोई पक्की बात नहीं कही, लेकिन आश्वासन दिया कि वह अपनी पार्टी के नेताओं से विचार-विमर्श करेंगे। चौटाला के पास उस वक्त चार सांसद थे, जो बहुमत के लिए जरूरी थे।

16 अप्रैल 1999 को, विश्वास मत परीक्षण से एक दिन पहले, चौटाला ने तरबूज का जूस पीते हुए ऐलान किया कि उनकी पार्टी राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए वाजपेयी सरकार को समर्थन देगी। यह खबर सुनकर एनडीए खेमे में खुशी की लहर दौड़ गई।

लोकसभा में बहुमत परीक्षण: एक वोट से सरकार गिरी

17 अप्रैल 1999 को, लोकसभा में बहुमत परीक्षण शुरू हुआ। सभी की नजरें उन सांसदों पर थीं, जो सरकार के पक्ष या विपक्ष में अपना मत डालने वाले थे। तभी, लोकसभा महासचिव एस. गोपालन को एक पर्ची सौंपी गई, जिसमें लोकसभा अध्यक्ष का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिखा था।

यह निर्णय कांग्रेस सांसद गिरधर गोमांग से जुड़ा था। गोमांग, जो फरवरी 1999 में ओडिशा के मुख्यमंत्री बनाए गए थे, ने अब तक लोकसभा से इस्तीफा नहीं दिया था। लोकसभा अध्यक्ष ने उन्हें “विवेक के आधार पर मतदान” करने की अनुमति दे दी।

जब वोटिंग हुई, तो गिरधर गोमांग ने सरकार के खिलाफ मतदान किया। इस तरह, वाजपेयी सरकार एक वोट से बहुमत साबित करने में विफल रही।

अटल सरकार की गिरावट के मायने

  • यह घटना भारतीय राजनीति में गठबंधन सरकारों की कमजोरी को उजागर करती है।
  • जयललिता का समर्थन वापस लेना और गोमांग का एक वोट यह दिखाता है कि किस तरह व्यक्तिगत और क्षेत्रीय राजनीति राष्ट्रीय सरकार को प्रभावित कर सकती है।
  • इस घटना के बाद देश में चुनाव हुए, और अटल बिहारी वाजपेयी ने भारी बहुमत के साथ वापसी की।