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प्रयागराज महाकुंभ: साधु परंपरा का केंद्र और तंगतोड़ा साधुओं की कठिन प्रक्रिया

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प्रयागराज में आयोजित होने वाले महाकुंभ की तैयारियां जोरों पर हैं। इस ऐतिहासिक और आध्यात्मिक आयोजन में देशभर से साधुओं का जमावड़ा लग रहा है। इन साधुओं में तंगतोड़ा साधु भी शामिल हैं, जिनकी चयन प्रक्रिया और परंपरा अपने आप में अनूठी और बेहद कठिन मानी जाती है।

तंगतोड़ा साधु: एक विशेष परंपरा

तंगतोड़ा साधु उन त्यागियों में से होते हैं जो अपने परिवार और सांसारिक जीवन को त्यागकर आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हैं। अपने माता-पिता और खुद का पिंडदान करने वाले इन साधुओं को सात शैव अखाड़ों में नागा साधु कहा जाता है, जबकि बड़ा उदासीन अखाड़े में इन्हें तंगतोड़ा कहा जाता है।
तंगतोड़ा साधु अखाड़े की कोर टीम का हिस्सा होते हैं, और इन्हें बनाने की प्रक्रिया अत्यंत जटिल होती है। इनका चयन संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के सिविल सेवा परीक्षा के इंटरव्यू से भी कठिन बताया जाता है।

तंगतोड़ा बनने की चयन प्रक्रिया

तंगतोड़ा साधु बनने के लिए श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन निर्वाणी के 5,000 से अधिक आश्रमों, मंठों और मंदिरों के महंत व प्रमुख संत अपने योग्य शिष्यों को नामित करते हैं।
इसके बाद इन्हें अखाड़े के रमता पंच, जो एक तरह से इंटरव्यू बोर्ड का काम करते हैं, के सामने प्रस्तुत किया जाता है। रमता पंच इनसे ऐसे गूढ़ और गोपनीय प्रश्न पूछते हैं, जिनका उत्तर केवल वही व्यक्ति दे सकता है जिसने संतों के साथ लंबे समय तक सेवा की हो।

आईएएस से भी कठिन इंटरव्यू क्यों?

तंगतोड़ा साधुओं के इंटरव्यू को कठिन इसलिए माना जाता है क्योंकि:

  1. कोई मॉक इंटरव्यू नहीं: इसकी तैयारी के लिए कोई मॉक टेस्ट या प्रशिक्षण नहीं होता।
  2. किताबों में नहीं मिलते उत्तर: पूछे गए प्रश्नों का उत्तर किसी भी लिखित ग्रंथ या किताब में उपलब्ध नहीं होता।
  3. गोपनीय सवाल: इनसे गुरु मंत्र, टकसाल, चिमटा, धुंधा और रसोई जैसे विशिष्ट विषयों पर सवाल पूछे जाते हैं, जो केवल परंपरा के माध्यम से ही सीखे जा सकते हैं।

कई दिनों तक कठिन परीक्षा

यह प्रक्रिया कई दिनों तक चलती है। कठिन परीक्षा पास करने के बाद:

  • शिष्य को संगम ले जाकर स्नान कराया जाता है।
  • उसे संन्यास और अखाड़े की परंपराओं का पालन करने की शपथ दिलाई जाती है।
  • इसके बाद इष्ट देवता के समक्ष पूजा-अर्चना की जाती है।

धूना के सामने कठिन परीक्षा

तंगतोड़ा बनने की अंतिम परीक्षा में शिष्य को एक वस्त्र (लंगोटी) में खुले आसमान के नीचे, धूना (अलाव) के सामने 24 घंटे कई दिनों तक रहना पड़ता है। यह साधु परंपरा के प्रति उनके समर्पण की परीक्षा होती है।

गोपनीय प्रश्न और रमता पंच का रोल

रमता पंच इनसे ऐसे सवाल पूछते हैं जो अखाड़े की परंपरा और संत जीवन से जुड़े होते हैं। ये प्रश्न अत्यंत गुप्त होते हैं और केवल गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से ही इनका ज्ञान प्राप्त होता है। रमता पंच तभी तंगतोड़ा की प्रक्रिया को मंजूरी देते हैं जब वे पूर्णतः आश्वस्त हो जाएं कि शिष्य संन्यास जीवन के लिए उपयुक्त है।

श्रीमहंत का वक्तव्य

श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के श्रीमहंत महेश्वरदास का कहना है:

“तंगतोड़ा बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन है। चेले को अखाड़े की परंपरा को आत्मसात करना पड़ता है। साक्षात्कार में गोपनीय सवाल पूछे जाते हैं, जिनका ज्ञान केवल लंबे समय तक गुरु संगत में रहने के बाद ही मिलता है।”