सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सवाल उठाया कि जय श्री राम का नारा लगाना अपराध कैसे कहा जा सकता है? न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ इस संबंधित मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
उच्च न्यायालय ने 13 सितंबर को अपने फैसले में मस्जिद के अंदर कथित तौर पर जय श्री राम के नारे लगाने वाले दो व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही रद्द कर दी। हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए हैदर अली सी.एम. सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई. पीठ ने कहा कि वे लोग एक विशेष धार्मिक नारा लगा रहे थे. यह अपराध कैसे हो सकता है? कोर्ट ने यह भी पूछा कि मस्जिद में घुसकर नारे लगाने वाले लोगों की पहचान कैसे की गई?
पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत से पूछा, आपने नारे लगाने वालों की पहचान कैसे की? आप कहते हैं कि नारे लगाने वाले सीसीटीवी में दिख रहे हैं. मस्जिद में घुसकर नारे लगाने वाले शख्स की पहचान हो गई? वकील ने कहा कि हाई कोर्ट द्वारा केस रद्द करने से पहले मामले की जांच अधूरी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट को लगा होगा कि यह आरोप आईपीसी की धारा 503 या धारा 447 के तहत अपराध की परिभाषा में नहीं आता है।