हिंदी और संस्कृत की अनदेखी पर छात्रों का गुस्सा फूटा
जम्मू-कश्मीर के छात्रों ने उमर अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार पर भाषाई भेदभाव का आरोप लगाते हुए सड़कों पर जोरदार प्रदर्शन किया। मंगलवार को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के नेतृत्व में सैकड़ों छात्रों ने विरोध मार्च निकाला और जम्मू राजमार्ग पर तवी पुल को जाम कर धरने पर बैठ गए। छात्रों का आरोप है कि हाल ही में जम्मू-कश्मीर लोक सेवा आयोग (JKPSC) द्वारा जारी 10+2 लेक्चरर पदों की भर्ती अधिसूचना में हिंदी और संस्कृत को जानबूझकर दरकिनार किया गया है।
विदेशी भाषाओं को बढ़ावा देने का आरोप
प्रदर्शनकारी छात्रों ने सरकार पर अरबी और फारसी जैसी विदेशी भाषाओं को प्राथमिकता देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि हिंदी और संस्कृत, जो राष्ट्रीय भाषाएं हैं और हमारी सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा हैं, उन्हें साजिशन उपेक्षित किया जा रहा है।
ABVP के नेता सुरिंदर सिंह ने कहा,
“मौजूदा सरकार क्षेत्रीय और भाषाई भेदभाव कर रही है। यह हमारी सभ्यता और पहचान पर सीधा हमला है। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।”
उन्होंने यह भी कहा, “हम किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हिंदी और संस्कृत को दरकिनार कर अरबी और फारसी जैसी भाषाओं को बढ़ावा देना हमारी संस्कृति के साथ अन्याय है।”
सांस्कृतिक पहचान की लड़ाई
ABVP की महिला नेता अनीता देवी ने प्रदर्शन के दौरान कहा कि यह केवल भर्ती प्रक्रिया का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक पहचान की लड़ाई है। उन्होंने कहा, “सरकार जानबूझकर हमारी भाषाओं की अनदेखी कर रही है। यह हमारी संस्कृति को मिटाने की कोशिश है और हम इसे किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करेंगे।”
575 पदों में हिंदी और संस्कृत का अभाव
प्रदर्शनकारियों का मुख्य गुस्सा 12 नवंबर को जारी JKPSC की अधिसूचना को लेकर था, जिसमें 575 शिक्षण पदों के विज्ञापन के बावजूद हिंदी और संस्कृत के व्याख्याता पद शामिल नहीं किए गए। छात्रों ने इसे भेदभाव करार देते हुए शिक्षा मंत्री सकीना इटू और उमर अब्दुल्ला सरकार को कठघरे में खड़ा किया।
प्रदर्शनकारी छात्रों में से एक ने कहा,
“यह कश्मीर-केंद्रित नीति का नतीजा है, जो जम्मू के छात्रों के साथ अन्याय कर रही है। हम इसे चुपचाप स्वीकार नहीं करेंगे। सरकार को चेतावनी देते हैं कि यह भेदभाव अब और नहीं चलेगा।”
प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी, पुलिस के प्रयास विफल
प्रदर्शन के दौरान पुलिस और प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने छात्रों को शांत करने की कोशिश की और उनसे धरना हटाने की अपील की। हालांकि, प्रदर्शनकारी नहीं माने, जिसके बाद पुलिस ने कई छात्रों को हिरासत में ले लिया। इसके बावजूद छात्रों का विरोध प्रदर्शन जारी रहा।
भाजपा ने भी किया सरकार का विरोध
भाजपा समेत कई राजनीतिक संगठनों ने भी उमर अब्दुल्ला सरकार की निंदा की। भाजपा विधायक विक्रम रंधावा ने इसे जम्मू के युवाओं के साथ अन्याय करार दिया और सरकार की कश्मीर-केंद्रित नीतियों पर सवाल उठाया।
उन्होंने कहा,
“उमर सरकार ने सत्ता में आते ही जम्मू के युवाओं की उम्मीदों को दरकिनार कर दिया है। हम इसे सहन नहीं करेंगे।”
हिंदी और संस्कृत के लिए मांग
विक्रम रंधावा ने JKPSC से मांग की कि हिंदी के लिए 200 पद, और डोगरी, पंजाबी और संस्कृत के लिए कम से कम 20 पद जोड़कर क्षेत्रीय भाषाओं को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए।