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इकरा हसन चौधरी: भारत में चुनाव सुधार के लिए वरीयता मतदान प्रणाली की वकालत

Iqra Hasan Choudhary Electoral R

समाजवादी पार्टी की सांसद इकरा हसन चौधरी ने भारत की चुनाव प्रणाली में बदलाव का सुझाव देते हुए कहा कि यदि वर्तमान बहुलवादी मतदान प्रणाली (First Past the Post System) को बदलकर वरीयता मतदान प्रणाली (Proportional Representation by Means of Single Transferable Vote) अपनाई जाए, तो देश में नफरत और ध्रुवीकरण को कम किया जा सकता है।

इकरा ने बताया कि यह प्रणाली न केवल चुनाव प्रक्रिया को अधिक समावेशी बनाएगी, बल्कि नेताओं को हर वर्ग के मतदाताओं से जुड़ने के लिए प्रेरित करेगी। उन्होंने इस प्रणाली की उपयोगिता को समझाते हुए कहा कि इससे चुनावी राजनीति में संतुलन और सहयोग की भावना बढ़ेगी।

क्या है वरीयता मतदान प्रणाली?

वरीयता मतदान प्रणाली में मतदाता प्रत्येक उम्मीदवार को अपनी पसंद के क्रम में रैंक देते हैं। यह प्रणाली भारत में कुछ क्षेत्रों में पहले से लागू है, जैसे:

  • विधान परिषद की शिक्षक, स्नातक और स्थानीय निकाय सीटों के चुनाव।
  • राष्ट्रपति और राज्यसभा चुनाव।

इस प्रणाली में:

  1. मतदाता अपने मतपत्र पर सभी उम्मीदवारों को उनकी वरीयता के क्रम में रैंक देते हैं।
  2. पहले वरीयता के मतों की गिनती होती है।
  3. यदि किसी उम्मीदवार को बहुमत (50%+1) नहीं मिलता, तो सबसे कम वोट पाने वाले को बाहर कर दिया जाता है।
  4. उसके मतों की दूसरी वरीयता गिनी जाती है और शेष उम्मीदवारों में जोड़ी जाती है।
  5. यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कोई उम्मीदवार आवश्यक बहुमत प्राप्त नहीं कर लेता।

इकरा हसन का दृष्टिकोण

इकरा हसन चौधरी ने कहा कि इस प्रणाली से:

  • हेट स्पीच और ध्रुवीकरण में कमी आएगी।
  • उम्मीदवार अधिक संतुलित और समावेशी चुनावी रणनीतियां अपनाएंगे।
  • मतदाता केवल एक वर्ग पर निर्भर नहीं रहेंगे, बल्कि सभी समुदायों और समूहों का समर्थन प्राप्त करने का प्रयास करेंगे।

उन्होंने कहा, “अगर मैं किसी एक समुदाय का वोट मांग रही हूं, तो दूसरे समुदाय को गाली नहीं दूंगी। मुझे यह देखना होगा कि हर वर्ग से समर्थन कैसे मिले।”

वर्तमान प्रणाली की सीमाएं

भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव First Past the Post System के तहत होते हैं। इसमें सबसे अधिक वोट पाने वाला उम्मीदवार जीतता है, भले ही उसे कुल मतदान का 50% से कम ही क्यों न मिले।

  • यह प्रणाली ध्रुवीकरण और वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा देती है।
  • अक्सर, उम्मीदवार केवल अपने समर्थक समूहों को खुश करने की कोशिश करते हैं, जिससे समाज में विभाजन गहराता है।

वरीयता मतदान प्रणाली के फायदे

  1. समावेशिता:
    उम्मीदवारों को हर वर्ग के मतदाता से जुड़ना पड़ता है।
  2. संतुलित निर्णय:
    मतदाता केवल अपनी पहली पसंद के आधार पर नहीं, बल्कि सभी संभावित विकल्पों का आकलन करके निर्णय लेते हैं।
  3. कम नफरत:
    पार्टियों और नेताओं को नफरत फैलाने के बजाय सभी समुदायों के समर्थन की आवश्यकता होती है।
  4. उपयुक्त प्रतिनिधित्व:
    विजेता वह होता है, जो अधिकतम मतदाताओं की पसंद के करीब हो।

इकरा हसन का बयान: बीजेपी पर निशाना

इकरा हसन ने वरीयता प्रणाली की वकालत करते हुए भाजपा पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा, “भाजपा मुसलमानों का वोट नहीं मांगती, इसलिए उन्हें नफरत का शिकार बनाती है। यह प्रणाली नेताओं को मजबूर करेगी कि वे हर वर्ग की आवाज़ उठाएं।”

जब उनसे पूछा गया कि सिर्फ भाजपा का नाम क्यों लिया, तो उन्होंने स्पष्ट किया, “भाजपा मुसलमानों को टिकट नहीं देती और न ही उनका समर्थन चाहती है। दूसरी पार्टियों में सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व मिलता है, लेकिन भाजपा देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय को नजरअंदाज करती है।”

उदाहरण: वरीयता प्रणाली की प्रक्रिया

समझें, यदि 1000 वोटर हैं और 5 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं:

  1. वोटर पहले उम्मीदवार को 1, दूसरे को 2, और इसी क्रम में सभी को रैंक देते हैं।
  2. यदि किसी उम्मीदवार को 50%+1 यानी 501 वोट नहीं मिलते, तो सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को बाहर कर दिया जाता है।
  3. उसके मतों की दूसरी वरीयता वाले वोट शेष उम्मीदवारों में जोड़े जाते हैं।
  4. यह प्रक्रिया तब तक चलती है, जब तक कोई उम्मीदवार बहुमत नहीं प्राप्त कर लेता।

भारत में वरीयता प्रणाली का मौजूदा उपयोग

  • राष्ट्रपति चुनाव।
  • राज्यसभा और विधान परिषद के लिए एमएलसी चुनाव।
  • विधान परिषद की शिक्षक, स्नातक, और स्थानीय निकाय सीटों के चुनाव।

इन चुनावों में:

  • मतदाता अपनी पहली वरीयता देना अनिवार्य है।
  • पहली वरीयता का वोट न देने पर मतपत्र रद्द कर दिया जाता है।
  • बाकी वरीयताएं वैकल्पिक होती हैं।

चुनाव प्रणाली में बदलाव का महत्व

वरीयता प्रणाली को लागू करने से भारत में चुनावी राजनीति अधिक संतुलित और समावेशी हो सकती है। यह प्रणाली नेताओं को विभाजनकारी राजनीति छोड़कर हर वर्ग के लिए काम करने के लिए प्रेरित करेगी। इकरा हसन चौधरी का यह सुझाव भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करने की दिशा में एक सार्थक कदम साबित हो सकता है।