विदेश में पढ़ाई: भारत से बड़ी संख्या में छात्र पढ़ाई के लिए विदेश जाते हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य पढ़ाई पूरी होते ही वहां नौकरी पाना और फिर वहीं बस जाना होता है। ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज़्यादा है, जो विदेश में बसने के लिए स्टडी वीज़ा का सहारा लेते हैं। लाखों भारतीय इसी तरह अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी जैसे देशों में बसे हैं। यहां तक कि पोलैंड, ऑस्ट्रिया और स्वीडन जैसे ऑफ-बीट देशों में भी भारतीय पढ़ाई करके बस गए हैं।
हालांकि, अब पढ़ाई के बाद उसी देश में बसना मुश्किल होता जा रहा है। इसकी वजह कई देशों के वीजा नियमों में होने वाले बदलाव हैं। भारतीयों के बीच पढ़ाई के लिए कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका सबसे लोकप्रिय जगह रहे हैं। रहने के मामले में भी ये देश बाकी दुनिया से काफी आगे हैं। लेकिन अब इन तीनों ही देशों में वीजा नियमों में बड़े बदलाव हुए हैं। इसके चलते अगर कोई छात्र वहां जाकर पढ़ाई करने और फिर वहीं बसने के बारे में सोच रहा है तो उसे इस बारे में सोचने की जरूरत है।
वीजा नियमों में बदलाव के कारण भारतीय छात्रों के लिए अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में पढ़ाई के बाद बसना काफी मुश्किल हो गया है। ऐसे में आइए जानते हैं कि विदेश में पढ़ाई के लिए तीन लोकप्रिय गंतव्य देशों में किस तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं।
कनाडा: क्षेत्रफल के लिहाज से कनाडा दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। यहां दुनियाभर से छात्र पढ़ने आते हैं। एक समय था जब भारतीय छात्र अमेरिका के बजाय कनाडा जाना पसंद करते थे। हालांकि, अब कनाडा में स्टडी परमिट मिलना मुश्किल होने वाला है, क्योंकि इसकी अप्रूवल दर में काफी कमी आई है। कनाडा ने अगले दो सालों के लिए अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या पर सीमा लगा दी है।
इमिग्रेशन मिनिस्टर मार्क मिलर ने कहा है कि 2024 में सिर्फ़ 3,64,000 स्टडी परमिट ही मंज़ूर किए जाएँगे। पिछले साल 5,60,000 स्टडी परमिट मंज़ूर किए गए थे। इसका मतलब है कि भारतीय छात्रों के लिए स्टडी परमिट पाने की होड़ बढ़ गई है। प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की सरकार के इस फ़ैसले का भारतीय छात्रों ने विरोध भी किया था। उनका मानना था कि सरकार के इस फ़ैसले की वजह से निर्वासन का ख़तरा बढ़ जाएगा।
ब्रिटेन: ब्रिटिश काउंसिल की रिपोर्ट के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय छात्रों में से ‘ग्रेजुएट रूट’ से भारतीय छात्रों को सबसे ज़्यादा फ़ायदा हुआ है। 2023 में इस नियम के लागू होने से ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में 68 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। ग्रेजुएट रूट के ज़रिए अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को डिग्री हासिल करने के बाद दो साल तक ब्रिटेन में रहने और काम करने का मौक़ा मिलता है। इसका मतलब है कि ग्रेजुएट वीज़ा के लिए किसी प्रायोजक की ज़रूरत नहीं होती।
हालांकि, जनवरी 2023 में ब्रिटिश सरकार ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए आश्रित वीज़ा के नियमों को समाप्त कर दिया। इसका मतलब यह है कि अंतरराष्ट्रीय छात्र जो पहले अपने परिवार के सदस्यों को यूके में लाने में सक्षम थे, वे अब ऐसा नहीं कर सकते। हालांकि, पीएचडी या पोस्ट-डॉक्टरल अध्ययन करने वाले छात्रों को इस नियम से छूट दी गई थी। वीज़ा प्रतिबंधों के कारण, अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए अपनी पढ़ाई पूरी करने से पहले काम करना भी बंद कर दिया गया था।
अमेरिका: अमेरिका में H-1B वीजा पाना पहाड़ चढ़ने जैसा है। लेकिन ग्रीन कार्ड पाने में और भी ज़्यादा चुनौतियाँ हैं। सोशल मीडिया पर आपको कई लोग मिल जाएँगे जो बताते हैं कि उन्हें H-1B वीजा पाने के लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ रही है या ग्रीन कार्ड के लिए उनका इंतज़ार कितना लंबा हो रहा है। यही वजह है कि यहाँ तक कहा जा रहा है कि पढ़ाई के लिए अमेरिका जाना समझदारी भरा फैसला नहीं है।
लोगों का कहना है कि अमेरिका से पढ़ाई पूरी करने के बाद H-1B वीजा हासिल करना अपने आप में एक नौकरी है। अमेरिकी कंपनियां H-1B वीजा के जरिए विदेशी नागरिकों को नौकरी पर रखती हैं। इसे वर्क वीजा के तौर पर भी जाना जाता है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के बाद डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाली रिपब्लिकन सरकार की वापसी की संभावना है। माना जा रहा है कि इसके चलते वीजा नियम और भी सख्त होने जा रहे हैं।