प्रयागराज, 09 नवम्बर (हि.स.)। महाकुम्भ में जन आस्था का सबसे बड़ा आकर्षण यहां आने वाले हिन्दू सनातन धर्म के 13 अखाड़े और उनका शाही स्नान होता है। धार्मिक परम्परा का अनुगामी बनकर आगे बढ़ रहे सनातन धर्म के इन अखाड़ों में भी धीरे-धीरे बदलाव हो रहा है। महाकुम्भ में हिन्दू सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करने वाले अखाड़ों में पर्यावरण संरक्षण का एजेंडा शामिल हो गया है। प्रदेश की योगी सरकार के कुम्भ आयोजन से जुड़े दृष्टिकोण की प्रेरणा ने अखाड़ों के बदलाव में भूमिका निभाई है।
-अखाड़ों की कार्य सूची में पर्यावरण संरक्षण का एजेंडा शामिल
महाकुम्भ को प्लास्टिक फ्री और ग्रीन कुम्भ के रूप में आयोजित करने का योगी सरकार ने संकल्प लिया है। एक तरफ जहां कुम्भ मेला प्रशासन इसके लिए निरंतर प्रयत्न कर रहा है तो वहीं दूसरी तरफ अखाड़ों और संतों के एजेंडे में भी सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के साथ पर्यावरण संरक्षण का एजेंडा शामिल हो गया है। निरंजनी अखाड़े के प्रयागराज स्थित मुख्यालय में 5 अक्टूबर को आयोजित हुई अखाड़ा परिषद की बैठक में पारित संकल्प प्रस्ताव में पर्यावरण संरक्षण भी एक बिंदु था।
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी बताते हैं कि प्रकृति हैं तो मनुष्य है। इसलिए प्रकृति को बचाए रखने के लिए पर्यावरण संरक्षण का विषय महत्वपूर्ण है। महाकुम्भ में इस बार अखाड़ों के संत भी लोगों को इसके लिए जागरूक करेंगे। इसके अलावा संतों और श्रद्धालुओं से प्लास्टिक और थर्मोकोल के बर्तनों के बजाय दोना पत्तल और मिट्टी के बर्तनों को बढ़ावा देने की अपील की गई है और इसके लिए योजना बनाई जा रही है।
-वंचित और दलित संतों को अखाड़ों में जगह देने की नीति पर अमल
आदि शंकराचार्य ने बौद्धिक और सैन्य भावना से लैस ब्राह्मण और क्षत्रिय परिवारों से तरुण युवाओं को एकत्र कर राष्ट्र और संस्कृति की रक्षा के लिए जो सेना तैयार की उन्हीं से 13 अखाड़ों का अस्तित्व सामने आया। अपनी धार्मिक परम्परा के अनुसार लम्बे समय से सनातन धर्म के ये अखाड़े अपनी धार्मिक यात्रा तय कर रहे हैं। योगी सरकार के 2019 के भव्य, दिव्य और स्वच्छ कुम्भ के आयोजन में अखाड़ों में बदलाव की बयार देखने को मिली है। अखाड़ों में समाज के वंचित और दलित वर्ग से आने वाले साधु संतो को भी अखाड़ों में बड़े पदों पर आसीन किया गया।
सबसे पहले दलित समाज से आने वाले जूना अखाड़े के संत कन्हैया प्रभु नंद गिरी को 2019 में जूना अखाड़े का महा मंडलेश्वर बनाया गया। इस परम्परा को आगे बढ़ाते हुए इस महाकुम्भ में 450 से अधिक वंचित और दलित समाज से आने वाले संतों को इस बार महा मंडलेश्वर, महंत और मंडलेश्वर जैसी उपाधियां दी जाएंगी। जूना अखाड़े के संरक्षक महंत हरि गिरी की अगुवाई में इस साल जूना अखाड़े में 370 दलित महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, महंत और पीठाधीश्वर बनाया जाना है, जिसकी सूची तैयार है।
श्री पंचायती अखाड़ा उदासीन निर्वाण के श्री महंत दुर्गादास बताते हैं कि उनके अखाड़े में भी इस महाकुम्भ में वंचित और दलित समाज से सम्बन्ध रखने वाले साधुओं को उच्च स्थान देने की तैयारी है। श्री पंचायती अखाड़ा महा निर्वाणी के सचिव महंत जमुना पुरी का कहना है अखाड़ों में आए इस बदलाव के पीछे उत्तर प्रदेश के संत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की वंचित समाज से आने वाले महात्माओं को भी योग्यतानुसार अखाड़ों में सम्मानित करने और उन्हें पदासीन करने की प्रेरणा भी है। सनातन धर्म को संरक्षित करने के लिए देश ही नहीं दुनिया भर से वंचितों को जोड़ने की आवश्यकता है।
-सन्यास बाद अखाड़ों में मातृ शक्ति को मिल रही प्राथमिकता
अखाड़े शिव और शक्ति का प्रतीक हैं। मातृ शक्ति को हमेशा को अखाड़ों का पूजनीय माना गया है। सनातन धर्म की ध्वजा फहराने में नारी शक्ति भी किसी से पीछे नहीं हैं। प्रयागराज में 2019 में आयोजित कुम्भ में देश-प्रदेश में नारी सशक्तीकरण की गूंज का असर देखने को मिला और बड़ी संख्या में महिला संतो को महामंडलेश्वर के पद पर विभूषित करते हुए उनका पट्टाभिषेक किया गया।
निर्मोही अनि अखाड़े के सचिव महंत राजेंद्र दास का कहना है कि पिछले कुम्भ मेले में आठ विदेशी महिलाओं को महंत बनाया था। इस महाकुम्भ में नारी शक्ति को बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी। ताकि चारों दिशाओं में सनातन का प्रचार प्रसार हो सके। विभिन्न अखाड़ों की तरफ से 53 महिला संतो को इस बार महंत व महा मंडलेश्वर बनाने की तैयारी है।