पूरी दुनिया को सनातन धर्म की महिमा दिखाने वाले स्वामी विवेकानन्द ने मानव जीवन को सफल और सार्थक बनाने के लिए कई उपयोगी सूत्र भी सुझाये हैं। ऐसा ही एक सूत्र करुप्पनिषद में ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्रापय वरनिबोधत’ के रूप में दिया गया है। इस माध्यम से उन्होंने लक्ष्य प्राप्ति तक निरंतर प्रयास करते रहने का संदेश दिया है. आज के भौतिकवादी एवं प्रतिस्पर्धात्मक युग में हर कोई अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दौड़ रहा है।
जीवन में हम आमतौर पर तकनीक और आधुनिकता के चक्कर में फंसकर अपने असली उद्देश्य और आंतरिक शक्ति को भूल जाते हैं। इससे भटकाव की स्थिति पैदा होती है. ऐसे में स्वामी विवेकानन्द द्वारा दिखाया गया मार्ग बेहद उपयोगी साबित हो सकता है। स्वामी जी ने कहा है कि ‘जागो’ अर्थात् अपने भीतर छिपी शक्तियों को पहचानो और आलस्य छोड़कर सक्रिय होकर कार्य करो। ‘जागो’ का अर्थ है अपनी चेतना का विस्तार करो।
जब हम सीमित अवधारणाओं और विचारों में फंसे रहते हैं, तो हमारा विकास अवरुद्ध हो जाता है। अगर आपके काम में कोई चुनौती नहीं है तो समझ लीजिए कि आप गलत रास्ते पर हैं। हमें इन चुनौतियों के प्रति सचेत रहना चाहिए। जागरूकता से हम सही निर्णय ले सकते हैं और लक्ष्य हासिल करने के लिए सही दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। दरअसल, असफलताओं से पीड़ित होने की जागरूकता हमें धैर्य और समर्पण के साथ अपने काम में लगे रहने के लिए प्रेरित करती है।
जब हम अपने उद्देश्य के प्रति स्पष्ट और जागरूक होते हैं, तो हमारा आत्मविश्वास मजबूत होता है। आत्मविश्वास ही सफलता का मूल आधार है। स्वामीजी के शब्दों में ‘आत्मा को आवाज दो और देखो वह कैसे जागती है।’ स्वामी विवेकानन्द का संदेश केवल आत्म-विकास तक ही सीमित नहीं है, बल्कि हमें समाज और राष्ट्र की सेवा करने की प्रेरणा भी देता है, जो राष्ट्र निर्माण के लिए नितांत आवश्यक है। वास्तव में यह सभी के लिए एक मार्गदर्शक सूत्र है।