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हाईकोर्ट ने कहा- अग्रिम जमानत अर्जी में जो तथ्य नहीं लिखा वह बहस में स्वीकार नहीं

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प्रयागराज, 27 अगस्त (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अग्रिम जमानत अर्जी में जो तथ्य नहीं लिखा है, वह वकील की बहस में स्वीकार नहीं की जा सकती। वकील वहीं बहस कर सकते हैं जो अर्जी में लिखा गया है।

कोर्ट ने कहा कि यदि तथ्यों से अपराध बनता है तो अग्रिम जमानत देना पीड़ित के हित के खिलाफ होगा। यह अन्याय होगा। अग्रिम जमानत विशेष उपबंध है जिसमें झूठा फंसाये जाने की सम्भावना पर कोर्ट अपने अधिकार का इस्तेमाल कर अग्रिम जमानत देती है।

कोर्ट की ड्यूटी है कि वह सभी पक्षों को न्याय दे। यदि अभियुक्त के खिलाफ अपराध बोध रहा हो तो उसका दायित्व है कि वह उन विशेष परिस्थितियों का सहारा ले जिस पर अदालत उसे संरक्षण दे सके। यदि निर्दोषिता के साक्ष्य नहीं है तो जमानत देना न्याय की हत्या होगी।

इसी के साथ कोर्ट ने प्रेमनगर झांसी के बैंक हेड कैशियर मनीष कुमार की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान ने मनीष कुमार की अर्जी की सुनवाई करते हुए दिया है।

मालूम हो कि सुनील कुमार तिवारी अपने सुरक्षा गार्ड योगेन्द्र सिंह के साथ बैंक गये। उन्होंने याची को 39 लाख 34 हजार 489 रुपये जमा करने को दिया और रसीद लिए बगैर वापस चले गये। दूसरे दिन रसीद लेने आदमी भेजा तो 11 लाख 34 हजार 489 रुपये की ही जमा रसीद दी गई। जिस पर एफआईआर दर्ज की गई।

याची का कहना था वह निर्दोष है। उसे फंसाया गया है। रुपये पूरे दिये गये थे। किंतु थोड़ी देर बाद गार्ड ने 28 लाख ले लिया। शेष राशि ही जमा की गई। यह सीसीटीवी फुटेज में दर्ज है।

जब कोर्ट ने पूछा कि कोई दस्तावेज है, जिससे निर्दोषिता साबित हो तो याची नहीं दे सके। उन तथ्यों के बहस की जो अर्जी में लिखा ही नहीं गया था। जिस पर कोर्ट ने अग्रिम जमानत देने से इंकार कर दिया।