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बलिया में रंगमंच पर जीवंत हुई 1942 की क्रांति

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बलिया, 18 अगस्त (हि.स.)। बलिया में रविवार को 1942 की क्रांति जीवंत हो उठी। बलिया बलिदान दिवस की पूर्व संध्या पर कलेक्ट्रेट स्थित गंगा बहुद्देशीय सभागार में रंगकर्मी आशीष त्रिवेदी द्वारा लिखित और निर्देशित नाटक ‘क्रांति 1942 एट बलिया’ का मंचन देखने वालों को ऐसा ही एहसास हुआ।

साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था संकल्प के रंगकर्मियों ने 1942 की क्रांति में बलिया की भूमिका को शानदार तरीके से मंच पर प्रस्तुत किया। प्रस्तुति के दौरान कई बार दर्शक और कलाकार एकाकार होते नजर आए। मंच से जब क्रांतिकारी नारे लग रहे थे तो दर्शकों ने भी उसमें अपनी आवाज़ मिलाई। 18 अगस्त 1942 में हुए बैरिया शहादत, 16 अगस्त को बलिया सब्जी मंडी में गोली कांड जैसे दृश्य को देख कर दर्शक उद्वेलित हो उठे। जानकी देवी के नेतृत्व में बलिया कलेक्ट्रेट पर महिलाओं ने जब तिरंगा फहराया तो दर्शकदीर्घा तालियों से गूंज गया। 19 अगस्त 1942 को क्रांति मैदान से आजादी की घोषणा हुई तो भृगु बाबा की जयघोष से गंगा बहुउद्देशीय सभागार गूंज उठा।

भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ एवं साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था संकल्प के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 45 दिवसीय प्रस्तुतिपरक अभिनय प्रशिक्षण कार्यशाला में 35 कलाकारों को प्रशिक्षित कर नाटक के लिए तैयार किया गया। नाटक में आनंद कुमार चौहान, अनुपम पांडेय, राहुल चौरसिया, विशाल इत्यादी की भूमिका सराहनीय रही। नाटक को शैलेन्द्र मिश्र और कृष्ण कुमार यादव मिट्ठू ने संगीत से सजाया। पार्श्व गायन रितेश पासवान ने किया।‌ संचालन उमेश कुमार सिंह ने किया।