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उप्र शिक्षक भर्ती में आए कोर्ट के फैसले से उप्र में सियासी पारा चढ़ा, विपक्ष हुआ मुखर

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लखनऊ, 17 अगस्त (हि.स.)। उत्तर प्रदेश में हुई 69 हजार शिक्षक भर्ती मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के मेरिट लिस्ट को रद्द करने वाले फैसला सुनाए जाने के बाद इस भर्ती को लेकर विपक्ष दलों ने सत्ता पक्ष पर हमला बोलना शुरू कर दिया है। सपा ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए भाजपा सरकार पर निशाना साधा है। तो वहीं बसपा प्रमुख ने भी प्रतिक्रिया दी है। हैरत की बात तो यह है कि सत्ता पक्ष और सहयोगी दलों से भी ​कोर्ट के फैसले को स्वागत योग्य बताया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि भाजपा सरकार में उप्र में 2019 में 69000 शिक्षक भर्ती हुई। इस शिक्षक भर्ती में पांच साल बाद शुक्रवार को लखनऊ हाई कोर्ट की डबल बेंच ने बड़ा निर्णय सुनाया है। फैसले में पूरी चयन सूची को ही रद्द कर दिया गया है। जस्टिस ए.आर. मसूदी और जस्टिस बृजराज सिंह की बेंच ने तीन माह के अंदर आरक्षण नीति का पालन करते हुए सरकार से नई लिस्ट देने को कहा है। इस फैसले के बाद विपक्ष दलों सत्ता दल पर पूरी तरह से मुखर हो गए हैं।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट करते हुए इस मामले में भाजपा सरकार पर ​तीखी हमला किया है। उन्होंने लिखा कि 69000 शिक्षक भर्ती भी आख़िरकार भाजपाई घपले, घोटाले और भ्रष्टाचार की शिकार साबित हुई। यही हमारी माँग है कि नये सिरे से न्यायपूर्ण नयी सूची बने, जिससे पारदर्शी और निष्पक्ष नियुक्तियाँ संभव हो सकें और प्रदेश में भाजपा काल मे बाधित हुई शिक्षा-व्यवस्था पुनः पटरी पर आ सके। हम नयी सूची पर लगातार निगाह रखेंगे और किसी भी अभ्यर्थी के साथ कोई हक़मारी या नाइंसाफ़ी न हो, ये सुनिश्चित करवाने में कंधे-से-कंधा मिलाकर अभ्यर्थियों का साथ निभाएँगे।

अखिलेश ने कहा कि ये अभ्यर्थियों की संयुक्त शक्ति की जीत है। सभी को इस संघर्ष में मिली जीत की बधाई और नव नियुक्तियों की शुभकामनाएँ।

इसी तरह बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने एक्स पर पोस्ट कर लिखा कि यूपी में सन 2019 में चयनित 69,000 शिक्षक अभ्यार्थियों की चयन सूची को रद्द करके तीन महीने के अन्दर नई सूची बनाने के हाईकोर्ट के फैसले से साबित है कि सरकार ने अपना काम निष्पक्षता व ईमानदारी से नहीं किया है। इस मामले में खासकर आरक्षण वर्ग के पीड़ितों को न्याय मिलना सुनिश्चित हो।

वैसे भी सरकारी नौकरियों की भर्तियों में पेपर लीक आदि के मामले में यूपी सरकार का रिकार्ड भी पाक-साफ नहीं होने पर यह काफी चर्चाओं में रहा है। अब सहायक शिक्षकों की सही बहाली नहीं होने से शिक्षा व्यवस्था पर इसका बुरा असर पड़ना स्वाभाविक। सरकार इस ओर जरूर ध्यान दे।

विपक्ष की प्रतिक्रिया के बीच सत्ता पक्ष ने भी कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। उप्र के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने एक्स पर लिखा कि शिक्षकों की भर्ती में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला सामाजिक न्याय की दिशा में स्वागत योग्य कदम है। यह उन पिछड़ा व दलित वर्ग के पात्रों की जीत है जिन्होंने अपने अधिकार के लिए लंबा संघर्ष किया। उनका मैं तहेदिल से स्वागत करता हूं।

वहीं एनडीए की सहयोगी पार्टी और अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने कहा कि 69 हजार शिक्षक भर्ती मुद्दे पर कोर्ट के आदेश के बाद (एक्स) पर पोस्ट कर कहा कि 69000 शिक्षक भर्ती मामले में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत है। खुद पिछड़ा वर्ग आयोग ने माना था कि इस भर्ती मामले में आरक्षण नियमों की अनदेखी हुई।

अब जबकि माननीय उच्च न्यायालय ने आरक्षण नियमों का पूर्ण पालन करते हुए नई मेरिट लिस्ट बनाने का आदेश दिया है, तब उम्मीद करती हूं कि वंचित वर्ग के प्रति न्याय होगा। जो माननीय उच्च न्यायालय ने कहा है, मैंने भी हमेशा वही कहा है।

मैंने इस विषय को हमेशा सदन से लेकर सर्वोच्च स्तर पर उठाया है। जब तक इस प्रकरण में वंचित वर्ग को न्याय नहीं मिल जाता मैं इस विषय को तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाने के लिए लगातार हर संभव प्रयास करती रहूंगी।

कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने 69 हजार शिक्षक भर्ती को लेकर आए हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि यह शर्मनाक है शिक्षा देने वाले शिक्षकों को ही न्याय नहीं मिल। शिक्षक भर्ती में आरक्षण के नियमों का पालन नहीं हुआ। भाजपा सरकार में तो पेपर लीक हो जाते है या तो फिर भर्ती में घोटाला हो जाता है।

69 हजार शिक्षक भर्ती संघ के अध्यक्ष विजय यादव ने हाईकोर्ट के आदेश पर खुशी जाहिर की है। संघर्ष को छह साल बीत गये, लेकिन सरकार ने हमें न्याय दिया। विजय यादव और अभ्यर्थियों ने सरकार को धन्यवाद दिया और कहा कि अफसरों ने सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाया है।