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नोटरी विवाह अनुबंध को नोटरीकृत कर सकते हैं या नहीं

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प्रयागराज, 09 अगस्त (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सार्वजनिक नोटरी के नियुक्ति प्राधिकरण केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्रालय, प्रदेश के न्याय विभाग से पूछा है कि सार्वजनिक नोटरी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 का उल्लंघन करके बनाए गए विवाह अनुबंध को नोटरीकृत करने में सक्षम है या नहीं।

सार्वजनिक नोटरी पांच सेमी व्यास की गोल नोटरीकृत मुहर लगाकर दस्तावेजों की सामग्री की प्रामाणिकता की जांच कर सकता है या नहीं और सार्वजनिक नोटरी द्वारा नोटरीकृत दस्तावेजों से उत्पन्न होने वाले कानूनी रूप से लागू होने वाले कर्तव्य का पक्षों पर बाध्यकारी प्रभाव होता है या नहीं।

यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने परिवार वालों की मर्जी के विरुद्ध शादी करके सुरक्षा मांगने आए मुरादाबाद के एक प्रेमी युगल की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट ने यह भी बताने को कहा है कि नोटरी अधिनियम 1952 का उल्लंघन करके वैवाहिक अनुबंध को नोटरीकृत करने में शामिल सार्वजनिक नोटरियों के मामलों को सम्बोधित और विनियमित करने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई क्या होगी। कोर्ट ने विभाग से ऐसे नोटरीकृत वैवाहिक अनुबंध से उत्पन्न होने वाले संबंधित और आकस्मिक मुद्दों के लिए सुझाव भी मांगे हैं।

याचिका में प्रेमी युगल ने अपने माता-पिता से जीवन और सम्पत्ति की रक्षा करने के लिए पुलिस को निर्देश देने की मांग की है। उनका कहना है कि उन्होंने अपनी मर्जी से गत 30 फरवरी को मुरादाबाद जिले के जैतवारा स्थित जामा मस्जिद में मुस्लिम रीति-रिवाजों के अनुसार शादी की। इसके बाद प्रयागराज में वैवाहिक अनुबंध पत्र का नोटरी शपथ पत्र तैयार किया गया, जिसमें कुछ अधिकारों और देनदारियों का उल्लेख किया गया। कोर्ट ने याचिका में लगाए गए निकाहनामा, वैवाहिक अनुबंध पत्र, पैन कार्ड आदि के जाली होने का संदेह व्यक्त किए जाने पर दिया है। सुनवाई के दौरान एक पक्ष की ओर से कहा गया कि दस्तावेजों की जांच करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि याचिका से जुड़े दस्तावेज इस न्यायालय से सुरक्षा आदेश प्राप्त करने के लिए जाली भी हो सकते हैं। कोर्ट ने कई याचिकाओं में देखा है कि शादियों को वैवाहिक अनुबंध पत्र के माध्यम से सम्पन्न किए जाने के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह विशेष रूप से उन मामलों में देखा जाता है जहां शादियों को हिंदू रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार सम्पन्न करने का दावा किया जाता है, जो हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 5 का उल्लंघन है।

कोर्ट ने कहा कि यह भी देखा गया है कि विवाह रजिस्ट्रार कार्यालय आमतौर पर वैवाहिक अनुबंध पत्र और फर्जी दस्तावेजों पर आधारित ऐसी शादियों को रजिस्टर करता है, जो सार्वजनिक नोटरी द्वारा नोटरीकृत किए जाते हैं। कई मामलों में भागने की शादियों को नोटरीकृत अनुबंध पत्र से सम्पन्न किए जाने का दावा किया जाता है। अक्सर जन्म प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, पैन कार्ड या अंक पत्र जाली पाए जाते हैं ताकि एक पक्ष की उम्र का झूठा दावा किया जा सके। ऐसे मामलों में लड़कियों को आमतौर पर निरक्षर बताया जाता है। जबकि पुलिस रिपोर्ट अक्सर यह बताती है कि लड़कियों ने 8वीं या 10वीं कक्षा उत्तीर्ण की है।

यह जानकारी जानबूझ कर छिपाई जाती है ताकि लड़कियों को 18 वर्ष से अधिक उम्र का दिखाया जा सके। ऐसे मामलों के तथ्य-परिस्थितियों से आसानी से समझा जा सकता है। ये बाल विवाह अधिनियम, 1929 के प्रावधानों का उल्लंघन करके किए जाते हैं और बाद में कुछ ट्रस्ट या सोसायटियों द्वारा जारी किए गए फर्जी विवाह प्रमाण पत्रों पर आधारित विवाह रजिस्ट्रार कार्यालय में पंजीकृत किए जाते हैं।