जौनपुर, 08 अगस्त (हि.स.) केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में वक्फ बोर्ड में सुधार के लिए विधेयक लाया गया। यह विधेयक मुसलमान को लेकर कितना सही है कितना गलत है। इस मामले को लेकर जौनपुर में गुरुवार को एक मजलिस में शिरकत करने पहुंचे वरिष्ठ शिया धर्मगुरु मौलाना मौलाना कल्बे जवाद से हिन्दुस्थान समाचर प्रतिनिधि ने बातचीत क। इस दाैरान मौलाना कल्वे जवाद ने कहा कि यह सरकार की अच्छी पहल है। वक्फ बोर्ड किसी भी जमीन का एक भी इंच कहीं से मालिक नहीं है । वो सिर्फ केयर टेकर है। यह सिर्फ मीडिया और सरकार द्वारा भ्रामक खबर फैलाई जा रही है।
वक्फ बोर्ड की जमीनों के बारे में सरकार द्वारा कानून में संशोधन करने के मामले में धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद ने कहा कि ये भ्रम हैं कि ये जमीन फौजी की, ये जमीन रेलवे की जमीन है, वक़्फ़ बोर्ड की इतनी जमीन है, सरकार की मिल्कियत हैं। सबसे बड़ा भ्रम यही है। जो जमीन है मुसलमान ने दान दी हैं अब से नहीं बल्कि डेढ़ सौ साल पहले से उनका सिर्फ वक़्फ़ बोर्ड केयरटेकर है। वो सब मुसलमानों की जमीन है। जिन्होंने अच्छे कामों के लिए नेक कामों के लिए धार्मिक कामों के लिये दान दिया है।
उन्हाेंने बताया हम एक वक्त बोर्ड के मुतवाली हैं जो 1845 की है उसे समय वक़्फ़ बोर्ड नहीं था वक़्फ़ बोर्ड अंग्रेजों ने 1935 में बनाया था वक़्फ़ बोर्ड एक्ट 1995 में आया है। वक़्फ़ बोर्ड की कोई जमीन नहीं है यह सब अल्लाह के नाम पर दान दी हुई जमीन है।अच्छे का काम के लिये धर्मिक काम ले लिया दान दिया है। जैसे लोग मंदिर में जमीन दान देते हैं। उन्होंने मद्रास के एक मंदिर का जिक्र करते हुए कहा कि लगभग 15 साल पहले वहां लोग एक मंदिर में हाथी दान दिया करते थे और उस मंदिर के पास 500 हाथी थे तो क्या हाथी मंदिर की मिल्कियत हो गए। लोगों ने उसे दान दिया है वक़्फ़ बोर्ड शरीयत का मामला है जैसे निकाह के लिए गवर्नमेंट ऐलान कर दे की निकाह हमारा आदमी पड़ेगा क्या यह संभव हो सकता है। यह एक शरीयत के तहत कानून है अगर गवर्नमेंट इसमें सुधार करती है हम यह देखेंगे कि इसमें गवर्नमेंट क्या सुधार कर रही है कहीं इसमें हमें नुकसान तो नहीं पहुंच रहा है यदि कानून में सुधार है तो हम इसका साथ देंगे हम देखेंगे की सरकार की मंशा साफ नहीं है तो हम इसका विरोध भी करेंगे।
नजूल की जमीन को लेकर भी लोगों में भ्रम फैलाया जाता है जबकि यह अंग्रेजों का बनाया कानून है यह आजादी के पहले का बना हुआ है उसके बाद का नहीं नजूल जमीन का मामला 1857 के पहले का है । जब हिंदुओं और मुसलमान ने मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत किया था उसे वक्त यह कानून बनाया गया था कि जितने भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं उनकी जमीन है जप्त कर ली जाए। तो उस वक्त अंग्रेजों ने जो लोग आजादी की लड़ाई लड़े थे उनकी जमीन जप्त कर ली थी आज 90% वहीं जमीन है जो नजूल की जो सरकार के पास है। नजूल की जमीनों का भी मलिक गवर्नमेंट नहीं है इसको अंग्रेजों ने जप्त किया था। अंग्रेजों के बने कानून में बदलाव किया जा रहा है तो नजूल की जमीनों में भी बदलाव किया जाना चाहिए। जब वक़्फ़ बोर्ड गुलामी की निशानी है तो नजूल भी गुलामी की निशानी ही है उसको क्यों नहीं बदल रहे हैं क्योंकि उसमें सरकार का फायदा है इमामबाड़े भी धार्मिक चीज हैं वह गवर्नमेंट की संपत्ति नहीं है।