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सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड का रिडेम्प्शन कैलेंडर जारी, तय समय से पहले जारी हुआ कैलेंडर

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नई दिल्ली, 26 अगस्त (हि.स.)। भारती रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मई 2017 से लेकर मार्च 2020 के बीच जारी किए गए सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड के लिए तय समय से पहले ही रिडेंप्शन कैलेंडर जारी कर दिया है। मई 2017 से लेकर मार्च 2020 के बीच की सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की 30 किस्तों का रिडेम्प्शन आरबीआई द्वारा इस साल 11 अक्टूबर से लेकर 01 मार्च 2025 के बीच किया जाएगा।

आरबीआई द्वारा जारी गाइडलाइन के मुताबिक सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में निवेश करने वाले निवेशक बॉन्ड के इश्यू डेट के 5 साल बाद रिडेम्प्शन के लिए अप्लाई कर सकते हैं। रिडेम्प्शन के लिए एनएसडीएल, सीडीएसएल, एसजीबी रिसीविंग ऑफिसेज और आरबीआई रिटेल डायरेक्ट के जरिए निवेशक अप्लाई कर सकते हैं। बता दें कि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड इस साल फरवरी में आखिरी बार जारी की गई थी। फरवरी 2024 के बाद अभी तक एसजीबी की नई किस्त जारी नहीं की गई है। माना जा रहा है कि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम को केंद्र सरकार बंद भी कर सकती है।

इस स्कीम की शुरुआत नवंबर 2015 में की गई थी। उस वक्त सोने के इंपोर्ट में कमी लाने के इरादे से इसकी शुरुआत की गई थी, ताकि निवेशक स्पॉट गोल्ड खरीदने की जगह पेपर गोल्ड में निवेश कर सकें। इसके तहत भारतीय रिजर्व बैंक भारत सरकार की ओर से गोल्ड बॉन्ड जारी करती थी। इस योजना के तहत निवेशकों को 2.5% की दर से गारंटीड ब्याज दिया जाता था। इसके साथ ही 8 साल के मेच्योरिटी पीरियड के बाद निवेशक सोना के बाजार भाव के हिसाब से पैसा वापस हासिल कर सकते थे।

नवंबर 2015 में सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की पहली किस्त के तहत निवेशकों को 2,684 रुपये प्रति ग्राम के भाव पर निवेश करने का मौका मिला था। खुदरा निवेशक इस बॉन्ड के तहत एक ग्राम से लेकर अधिकतम 4 किलोग्राम तक के पेपर गोल्ड के लिए निवेश कर सकते थे। सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड के पहले किस्त की मैच्योरिटी 2023 में हुई थी। मेच्योरिटी के बाद निवेशकों को 6,132 रुपये प्रति ग्राम के हिसाब से रिडेम्प्शन प्राइस दिया गया था। इस तरह निवेशकों को प्रति ग्राम 3,448 रुपये यानी 128.5 प्रतिशत का मुनाफा हुआ था।

बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार अब सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड को महंगा और जटिल मानते हुए बंद करने की बात पर विचार कर रही है। फरवरी में पेश किए गए अंतरिम बजट में बताया गया था कि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड के निवेशकों का बकाया बढ़कर 85 हजार करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया है, जबकि मार्च 2020 में निवेशकों का बकाया महज 10 हजार करोड़ रुपये था। ऐसी स्थिति में निवेशकों के लिए भले ही यह बॉन्ड मुनाफे का सौदा हो, लेकिन केंद्र सरकार के खजाने पर इसकी वजह से बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। माना जा रहा है कि इसी वजह से सरकार इस स्कीम के 10 साल पूरा होने के पहले ही इसे बंद करने की बात पर विचार करने लगी है।