प्रयागराज, 23 सितम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि विभागीय कार्यवाही में बरी होना आपराधिक केस कार्यवाही रद्द करने का आधार नहीं हो सकता। ट्रायल में आरोप निर्मित होने व गवाहों का परीक्षण होने के पश्चात अभियुक्त को दोषमुक्त किया जा सकता है। किन्तु आपराधिक कार्यवाही समाप्त नहीं की जा सकती।
कोर्ट ने गोविंदपुरा, गाजियाबाद पोस्ट आफिस फ्राड के आरोपी सुभान अली की याचिका खारिज कर दी है। याची को विभागीय जांच में नियम विरुद्ध आरोप या लागू न होने वाले आरोप लगाये जाने के कारण उसे बरी कर दिया गया था। इसी आधार पर उसने आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। यह आदेश न्यायमूर्ति समित गोपाल ने सुभान अली की याचिका पर दिया है।
मालूम हो कि गाजियाबाद की सीबीआई थाने में षड्यंत्र, भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी आदि आरोप में 13 जनवरी 17 को शिकायत मिली थी। जिसमें गोविंदपुरा पोस्ट आफिस व गाजियाबाद हेड पोस्ट आफिस में 2015 मे फर्जी दस्तावेज से धन का स्थानांतरण किया गया। जबकि खाता बंद था। 15 अक्टूबर 20 को सीबीआई ने आठ अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। सीबीआई कोर्ट गाजियाबाद ने संज्ञान लेते हुए सम्मन जारी किया। ट्रायल में चार गवाहों का परीक्षण हो चुका है।विभागीय जांच में बिना आरोप साबित किए तकनीकी आधार पर बरी होने के बाद यह कहते हुए याचिका दायर की गई कि आपराधिक केस खत्म किया जाय।
सीबीआई की तरफ से कहा गया कि जब एक बार आरोप निर्मित कर ट्रायल शुरू हो गया तो बिना गुण-दोष का निर्धारण किए बीच में अभियुक्त को डिस्चार्ज नहीं किया जा सकता। वह ट्रायल में दोष साबित न होने पर ही बरी हो सकता है। विभागीय जांच में बरी होने के आधार पर आपराधिक केस समाप्त नहीं किया जा सकता।