हमीरपुर, 19 अगस्त (हि.स.)। बुंदेलखंड क्षेत्र में रक्षाबंधन त्योहार के दिन आज भाईयों की कलाई सूनी रहेगी। शहर छोड़कर समूचे ग्रामीण इलाकों में रक्षाबंधन त्यौहार के अगले दिन बहनें भाईयों को राखी बांधेगी। राखी बांधते ही वीरभूमि में कजली मेले की धूम मचेगी। सैकड़ों साल पुराने कजली मेले को लेकर अब तैयारियों फाइनल हो गई है।
हमीरपुर के आल्हा गायक दिनेश कुमार के मुताबिक सैकड़ों साल पहले रक्षाबंधन के दिन राजा पृथ्वीराज चौहान ने महोबा में हमला कर दिया था। उनकी सेना ने रानी मल्हना के डोले लूट लिये थे तब वीर भूमि के लोगों ने इस त्यौहार को रद्द कर दिया था। इस ऐतिहासिक घटना के बाद आल्हा-ऊदल ने पृथ्वीराज चौहान की सेना से मोर्चा लेकर लूटे गये रानी मल्हना के डोले वापस लाये थे। इसीलिये उस दिन रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया गया था। भीषण संग्राम में पृथ्वीराज चौहान के बेटे सूरज सिंह की मौत हुयी थी। लूटे गये कजली से भरे डोले वापस मिलने के बाद महोबा के कीरत सागर में रानी मल्हना ने रक्षाबंधन के अगले दिन कजलियों का विसर्जन कर रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया था।
रक्षाबंधन त्यौहार के दिन दही, जलेबी खाने की कायम है परम्परा
साहित्यकार लखनलाल जोशी ने बताया कि रक्षाबंधन के दिन जलेबी घर-घर खाने की परम्परा भी है। बहनें भाईयों के हाथों में रक्षा सूत्र बांधती है। कजली लेकर महिलायें सावन गीत व कजली गीतों के साथ तालाबों में विसर्जन करती है। जगह-जगह आल्हा-ऊदल की वीरगाथा आल्हा के माध्यम से गायी जाती है। आल्हा गायक दिनेश ने बताया कि बुन्देलखण्ड में रक्षाबंधन व कजली महोत्सव के दौरान यदि आल्हा न सुनाई पड़े तो सावन, मनभावन नहीं लगता है। हमीरपुर के रमेड़ी मुहाल के अलावा ग्रामीण इलाकों में कजली मेले की धूम मचेगी।
बुंदेलखंड में राखी बांधने के साथ ही कजली मेले का होगा आगाज
यहां के बुजुर्ग साहित्यकार लखनलाल जोशी व डा.भवानीदीन प्रजापति ने बताया कि महोबा के वीर आल्हा-ऊदल की वीरता की गाथा बड़े ही उमंग से सुनते हैं और बुंदेलखंड की वीरता पर गर्व महसूस भी करते हैं। आल्हा-ऊदल की वीरता आज भी यहां के लोगों के दिलों में बसी है। रविवार को पूरे देश में रक्षाबंधन की धूम मची हुई है, लेकिन बुंदेलखंड के महोबा में यह पर्व आज नहीं मनाया जा रहा है। ऐतिहासिक परम्परा का निर्वहन करते हुये इस वीर भूमि में मंगलवार को रक्षाबंधन मनाने के साथ ही तीन दिवसीय कजली मेले का आगाज होगा।
राजा परमाल के दरबारी कवि थे आल्ह खंड के रचयिता कवि जगनिक
आल्हा गायक दिनेश कुमार ने बताया कि जिस खण्ड काव्य को सुनकर लोगों की भुजायें फड़क उठती है उसकी रचना करने वाले महान कवि जगनिक थे जो शूरवीर सेनापति व मंत्री भी थे। वह आगरा या फतेहपुर के नहीं बल्कि महोबा के ही रहने वाले थे। आजकल के आल्हा गायक आल्ह खण्ड को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत करते है जिससे लोगों को सही जानकारी नहीं मिल पाती है। जगनिक महोबा के ही रहने वाले थे। वे राजा परमाल के दरबारी कवि थे। आल्हा-ऊदल उन्हें मामा कहते थे। जगनिक आल्हा-ऊदल के ननिहाल के रहने वाले थे।