हमीरपुर, 01 अक्टूबर (हि.स.)। बुंदेलखंड की मिट्टी की सेहत सुधारने को अब किसानों ने तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए डिपार्टमेंट ने ढेंचा की खेती को बढ़ावा देने के लिए अनुदान में बीज देने का फैसला किया है। डिपार्टमेंट के बड़े अफसर का कहना है कि ढेंचा की खेती से तैयार खाद से फसलों की बंपर पैदावार होगी।
बुन्देलखंड में पिछले कुछ दशकों से केमिकल खाद की डिमांड खेतीबाड़ी के लिए बढ़ी है। हर साल खरीफ और रबी के मौसम में खाद के लिए किसानों को बड़ी जद्दोजहद करनी पड़ती है। ग्रामीण इलाकों में खाद के लिए कई किसानों की जान पर बन आई थी। वहीं पिछले साल कुछ किसान को खाद की भीषण किल्लत में अपनी जान भी गंवानी पड़ी थी। प्रशासन को भी पुलिस के पहले में खाद बंटवानी पड़ी थी। कई जगहों पर किसानों ने खाद न मिलने पर हंगामा किया। केमिकल खाद के बजाय ढेंचा की हरी खाद तैयार कराने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने बड़ी मुहिम चलाई है।
उपनिदेशक कृषि हरीशंकर भार्गव ने बताया कि विभाग से ढेंचा की खेती के लिए किसानों को अनुदान में बीज दिए जाते है। इस बार पचास किलो बीज की डिमांड शासन से की गई है। बताया कि ढेंचा की फसल से तैयार खाद से फसलों का बंपर उत्पादन भी होता है। बताया कि राजकीय कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने यहां कुरारा क्षेत्र में ढेंचा की फसल से हरी खाद बनाने के लिए किसानों को जागरूक किया है। खेतों में यह खाद कैसे तैयार होगी और इससे होने वाले फायदे के बारे में किसानों को विस्तार से समझाया गया है। उन्होंने बताया कि ढेंचा की फसल से मिट्टी में 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर हरी खाद तैयार होती है। जिसमें मृदा को नाइट्रोजन, पोटैशियम, जस्ता, तांबा, मैंगनीज, लोहा सहित अन्य तत्व मिलते है। इसके इस्तेमाल से खेत में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है। और खेत की भौतिक दशा में भी सुधार होता है।
फसलों को पोषक तत्वों की मिलेगी बड़ी खुराक
उपनिदेशक कृषि हरीशंकर भार्गव ने बताया कि कृषि भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए ढेंचा एक उत्तम विकल्प है और इसके खेतीबाड़ी में इस्तेमाल से फसलों का ज्यादा और अच्छा उत्पादन होता है। बताया कि केमिकल खाद के लगातार इस्तेमाल से खेत की मिट्टी की सेहत बिगड़ गई है। जिसका सीधा असर पर्यावरण पर भी पड़ रहा है। इसलिए किसानों को अब ढेंचा की हरी खाद करना चाहिए। उन्होंने बताया कि ढेंटा की हरी खाद 16 पोषक तत्वों की पूर्ति होगी साथ ही फसलों का उत्पादन भी अच्छा होगा।
ढेंचा की खाद से मिट्टी की भी सुधरेगी सेहत
उपनिदेशक कृषि हरीशंकर भार्गव ने बताया कि पिछले कई दशकों से किसान खेतीबाड़ी में केमिकल खाद का इस्तेमाल कर रहा है जिससे कृषि भूमि की उर्वरा क्षमता भी खत्म होती जा रही है। ऐसे में ढेंचा की खाद कृषि भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए रामबाण साबित होगी। बताया कि ढेंचा की फसल अप्रैल से जुलाई माह तक की जाती है। इसमें प्रति हेक्टेयर 40 से 50 किलोग्राम ढेंचा के बीज की जरूरत होती है। इसके लिए 40 से 45 दिन की होने और फूल आने से पहले जुताई करके मिट्टी में मिलाई जाती है।
ढेंचा फसल की खाद से होगा बम्फर उत्पादन
कृषि वैज्ञानिक डाँ.एसपी सोनकर ने बताया कि ढेंचा की हरी खाद से फसलों का बंफर पैदावार होगा। वहीं इस खाद से तैयार फसल भी सेहत के लिए लाभकारी होती है। बताया कि ढेंचा की हरी खाद से कार्बनिक अमल पैदा होता है जो भूमि को उपजाऊ बनाता है। उन्होंने बताया कि ढेंचा की खाद से पोषक तत्वों के साथ ही इसमें सूखे से निपटने की क्षमता भी होती है। उपनिदेशक कृषि हरीशंकर भार्गव ने बताया कि ढेंचा की खाद से उत्पादन बढ़ेगा वहीं महंगे केमिकल खाद से किसानों को निजात भी मिलेगी।