पहले पाकिस्तान और अब बांग्लादेश में तख्तापलट के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया गया है. पिछले दिनों बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आरोप लगाया था कि बांग्लादेश और म्यांमार के कुछ हिस्सों को अलग करके पूर्वी तिमोर जैसा ‘ईसाई देश’ बनाने की साजिश की जा रही है. इसके बाद न केवल उनकी सरकार का तख्ता पलट हुआ, बल्कि उन्हें अपनी जान बचाने के लिए बांग्लादेश से भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी। उन्होंने यह भी कहा था कि उन्हें इस साल जनवरी में चुनाव जीतने का लालच दिया गया था. लालच देने वाले ने उनसे बांग्लादेश में ‘एयरबेस’ बनाने की शर्त रखी थी. उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव के कारण अमेरिका पर संदेह जताया जा रहा है. पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी जब अमेरिका के खिलाफ मोर्चा खोला तो न सिर्फ उनकी सरकार को अपदस्थ कर दिया गया बल्कि उन्हें जेल की कोठरी में डाल दिया गया. शेख हसीना ने जिस भविष्य के ईसाई देश का संकेत दिया था, उसमें उत्तर-पूर्वी भारत के कम से कम पांच राज्यों – अरुणाचल, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम और मेघालय – को शामिल करने की साजिश चल रही है.
इन पांच राज्यों में से तीन, मिज़ोरम, नागालैंड और मेघालय, मुख्य रूप से ईसाई बन गए हैं। जिस तेजी से उत्तर-पूर्व में धर्मांतरण की साजिश चल रही है, उसके आधार पर यह आशंका है कि निकट भविष्य में अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में भी ईसाई बहुसंख्यक होंगे। मिजोरम में ईसाई आबादी 90 फीसदी है. 1951 में नागालैंड में ईसाई आबादी 46.04% थी, जो 2011 में बढ़कर 87.92% हो गई। मेघालय में भी 1961 में ईसाई जनसंख्या 35.21 प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़कर 74.59 प्रतिशत हो गयी। अरुणाचल में 1971 तक केवल 0.78% ईसाई थे जो 2011 में बढ़कर 30.26% हो गए। 1951 में मणिपुर में ईसाई आबादी 11.84% थी जो 2011 में बढ़कर 41.28% हो गई। इन राज्यों को जोड़ने के लिए असम के कार्बी आंगलोंग जिले को चुना गया है। चार दशकों में इस जिले में ईसाइयों की संख्या सात फीसदी से बढ़कर 17.50 फीसदी हो गयी है. भारत का विभाजन हिंदू-मुस्लिम आधार पर हुआ था। अब भी धर्म की आड़ में उसे अस्थिर करने की साजिश चल रही है.