प्रयागराज, 10 अक्टूबर (हि.स.)। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि आवेदक को तथ्यों की जानकारी होने के आधार पर मजिस्ट्रेट 156(3) की अर्जी पर एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने से इनकार नहीं कर सकते हैं।
मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत आदेश करते समय अपराध की गंभीरता, साक्ष्य की आवश्यकता और न्याय हित पर विचार करना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि मजिस्ट्रेट को यह देखना चाहिए कि मामले में पुलिस जांच की आवश्यकता है या नहीं। जैसे कि आरोपियों की पहचान करना, गायब व्यक्ति या चोरी की गई सम्पत्ति की बरामदगी करना, या साक्ष्य इकट्ठा करना। इसी के साथ कोर्ट ने एक महीने में कानून के अनुसार नया आदेश करने का निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति मंजूरानी चौहान ने मुकेश खरवार की अर्जी पर दिया है। चंदौली निवासी मुकेश खरवार ने सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत अर्जी दाखिल कर आरोप लगाया था कि वह क्षेत्र पंचायत चहनिया का निर्वाचित सदस्य है। चार फरवरी 2024 को वह 66 क्षेत्र पंचायत सदस्यों के साथ ब्लॉक प्रमुख चहनिया अरुण कुमार जायसवाल के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के लिए डीएम कार्यालय पर एकत्र हुआ था। इससे नाराज होकर गोपाल सिंह उर्फ बबलू और मोनू सिंह 14 फरवरी 2024 को गांव पहुंचे और ब्लॉक प्रमुख के पक्ष में शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया।
इनकार करने पर गाली-गलौच, जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए मारपीट की। उन्होंने उसे जबरदस्ती मोटरसाइकिल पर ले जाने की कोशिश की और हमला किया। शोर सुनकर पत्नी व अन्य ग्रामीण वहां पहुंचे और बीच-बचाव कर उसे बचाया। यह भी आरोप लगाया कि उसने सम्बंधित थाने में प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद 156(3) के तहत अर्जी दी। सम्बंधित मजिस्ट्रेट ने अर्जी को परिवाद की तरह दर्ज किया।
एफआईआर दर्ज करने का निर्देश जारी करने की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया। याची ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने तथ्यों का अवलोकन करने व दलीलों को सुनने के बाद मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द करते हुए नया आदेश करने का निर्देश दिया।