ब्रिटेन और मॉरीशस के बीच लगभग आधी सदी तक चला विवाद ख़त्म हो गया है. ब्रिटेन और मॉरीशस आख़िरकार चागोस द्वीप पर एक समझौते पर पहुँच गए हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ब्रिटेन चागोस द्वीप को मॉरीशस को सौंपने पर सहमत हो गया है। चागोस द्वीप हिंद महासागर में स्थित रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र है। भारत भी इस मामले में मॉरीशस का समर्थन करता रहा है.
यूके-यूएस सैन्य अभियान जारी रहेंगे
ब्रिटेन ने कहा है कि समझौते के तहत चागोस द्वीप की संप्रभुता मॉरीशस को सौंप दी जाएगी. समझौते के बाद, दशकों पहले द्वीप से विस्थापित हुए लोगों को घर लौटने की अनुमति दी जाएगी। हालाँकि, ब्रिटेन डिएगो गार्सिया में यूके-यूएस सैन्य अड्डे का उपयोग करना जारी रखेगा। आपको बता दें कि ब्रिटेन और अमेरिका के साथ मिलकर चागोस के डिएगो गार्सिया द्वीप पर सैन्य अड्डा चलाते हैं, जिससे उन्हें हिंद महासागर में रणनीतिक ताकत मिलती है।
क्या था पूरा विवाद?
दरअसल, 1814 से इस क्षेत्र पर ब्रिटेन का कब्जा है। 1960-70 के दशक में, ब्रिटेन ने चागोस द्वीप पर रहने वाले मॉरीशस और सेशेल्स के लगभग 2,000 निवासियों को निकालने के लिए मजबूर किया। इस घटना को आज भी मानवता के ख़िलाफ़ अपराध के तौर पर देखा जाता है. 1968 में जब मॉरीशस को आजादी मिली, तब भी ब्रिटेन ने इस क्षेत्र पर कब्जा जारी रखा और अमेरिका के साथ मिलकर यहां एक सैन्य अड्डा बनाया। इस मामले में ब्रिटेन और मॉरीशस के बीच 50 साल से भी ज्यादा समय से विवाद चल रहा था. साल 2019 से 2021 के बीच इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने भी मॉरीशस के पक्ष में फैसला सुनाया.
द्वीप क्यों महत्वपूर्ण है?
चागोस हिंद महासागर के मध्य में स्थित लगभग 60 द्वीपों का एक समूह है। यह 60 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह द्वीपसमूह मॉरीशस से लगभग 2,200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चागोस की भौगोलिक स्थिति किसी भी देश को हिंद महासागर में महत्वपूर्ण रणनीतिक लाभ देती है। माना जाता है कि यही वजह है कि ब्रिटेन और अमेरिका अब भी यहां सैन्य अड्डा बनाना चाहते हैं.
ब्रिटेन ने क्या कहा?
इस समझौते को लेकर ब्रिटिश विदेश मंत्री डेविड लैमी ने एक बयान जारी किया है. उन्होंने कहा, ‘ब्रिटेन डिएगो गार्सिया में एक महत्वपूर्ण सैन्य अड्डे को सुरक्षित करने के लिए मॉरीशस के साथ एक समझौते पर पहुंचा है। इस समझौते को अमेरिका का भी समर्थन प्राप्त है और इससे अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा होगी. यह समझौता अवैध प्रवासन के प्रवाह को रोकेगा और हिंद महासागर में खतरों से बचाएगा।’