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गर्भास्थ शिशु को माँ के पेट से खून चढ़ाकर दिया जीवन

लखनऊ, 11 सितंबर (हि.स.)। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय की फिट्ल मेडिसिन यूनिट ने पहली बार गर्भास्थ शिशु को माँ के पेट से खून चढ़ाकर बड़ी कामयाबी हासिल की है। इंट्रआयूटिराइन ट्रांसफ्यूजन कहलाने वाले इस प्रक्रिया में अल्ट्रासाउंड की मदद से सुई के ज़रिये गर्भाश्य में ही भ्रूण को रक्त चढ़ाया जाता है। केजीएमयू में पहलीं बार स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में डॉ. सीमा महरोत्रा के नेतृत्व में चिकित्सकों की टीम ने चिकित्सा प्रक्रिया को पूरा किया।

केजीएमयू की स्त्री एवम प्रसूति रोग की विभागाध्यक्ष डॉ. अंजु अग्रवाल ने बताया कि क्वीन मैरी हास्पिटल केजीएमयू भ्रूण चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवा रहा है और अब हमने आरएच – आइसोइम्युनाइज़ेशन ग़र्भावस्था के उपचार में सफलता प्राप्त की है।

डॉ. सीमा मेहरोत्रा ने बताया कि प्रसूता को सात माह के गर्भवती होने पर भ्रूण में खून की कमी पाये जाने पर कानपुर से रेफर किया गया था। केस हिस्ट्री स्टडी करने पर पता चला कि महिला पूर्व में दो बार गर्भवती हुई थी और इस बार लाल रक्त कोशिका एलोइम्युनाइज़ेशन की शिकार हुई। जिसके बाद गर्भाशय में भ्रूण को दो बार रक्त चढ़ा कर 35 हफ़्ते में सिज़रियन द्वारा 03 किलो के बच्चे की डिलीवरी करायी गई।

डॉ नम्रता ने बताया कि मां-बाप के ब्लड आरएच विपरीत होने पर स्थिति बनती है। नवजात की मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव और पिता के ब्लड आरएच पॉजिटिव होने के कारण भी यह स्थिति बनती है।

डा. नम्रता के अनुसार, इस विपरीत रक्त समूह के कारण, भ्रूण आरएच पॉजिटिव हो सकता है और मां में एंटीबॉडी विकसित होते हैं और ये एंटीबॉडी प्लेसेंटा को पार करते हैं और भ्रूण के आरबीसी को नष्ठ कर देते है। धीरे धीरे ये भ्रूण में एनीमिया का कारण बनते हैं। ऐसी स्थिति में पूरे भ्रूण में सूजन आ जाती है। ऐसे मामलों में गर्भाशय में ही भ्रूण की मृत्यु हो जाती है।

डॉ. मंजुलता वर्मा ने बताया कि अमूमन हजार से बारह सौ प्रसूताओं में किसी एक को इसक गंभीर खतरा होता है, लेकिन ट्रांसफ्युजन से इसको रोका जा सकता है।

टीम में डॉ. नम्रता, डॉ मंजूलता वर्मा, रैडियोलॉजी विभाग के डॉ. सौरभ, डॉ सिद्धार्थ, पैडिएट्रिक्स विभाग से डॉ हरकीरत कौर, डॉ श्रुति और डॉ ख्याति शामिल रहीं।

कुलपति प्रो. सोनिया नित्यानंद ने पूरी टीम को सफल उपचार के लिए बधाई दी।