प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय कैबिनेट ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। सूत्रों ने बताया कि मोदी कैबिनेट ने बुधवार (18 सितंबर) को हुई बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। हालांकि, इस संबंध में सरकार की ओर से अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। एक राष्ट्र, एक चुनाव पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने कैबिनेट के समक्ष यह रिपोर्ट पेश की है। इसके बाद कैबिनेट ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ पर रामनाथ कोविंद की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है।
न्यूज18 ने सूत्रों के हवाले से बताया कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक अब संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना है। पीटीआई के मुताबिक, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष पेश की गई। सूत्रों ने बताया कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने लोकसभा चुनावों की घोषणा से पहले मार्च में यह रिपोर्ट सौंपी थी। कैबिनेट के समक्ष रिपोर्ट पेश करना कानून मंत्रालय के 100 दिवसीय एजेंडे का हिस्सा है।
उच्च स्तरीय समिति ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने और उसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की थी। समिति ने सिफारिशों के क्रियान्वयन की निगरानी के लिए एक ‘कार्यान्वयन समूह’ गठित करने का भी प्रस्ताव रखा था।
इसमें कहा गया था कि एक साथ चुनाव कराने से संसाधनों की बचत होगी, विकास और सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा मिलेगा, लोकतंत्र की नींव मजबूत होगी और भारत की आकांक्षाएं साकार होंगी।
समिति की सिफारिश क्या है?
समिति ने भारत के चुनाव आयोग को राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से एक संयुक्त मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र तैयार करने की भी सिफारिश की है। वर्तमान में, भारत का चुनाव आयोग लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार है। जबकि नगर निगमों और पंचायतों के लिए स्थानीय निकाय चुनाव राज्य चुनाव आयोग द्वारा कराए जाते हैं।
समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की है, जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं होगी। हालांकि, इसके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयकों की आवश्यकता होगी जिन्हें संसद द्वारा पारित किया जाना आवश्यक होगा। एकल मतदाता सूची और एकल मतदाता पहचान पत्र से संबंधित कुछ प्रस्तावित परिवर्तनों को कम से कम आधे राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी।
इसके अलावा विधि आयोग भी जल्द ही एक साथ चुनाव कराने पर अपनी रिपोर्ट सौंप सकता है। सूत्रों ने बताया कि विधि आयोग 2029 से सरकार के तीनों स्तरों – लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं और पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश कर सकता है और सदन में बहुमत न होने की स्थिति में एकजुट सरकार बनाने का प्रावधान भी कर सकता है।
अमित शाह ने एक दिन पहले ही घोषणा कर दी थी
एक दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार (18 सितंबर) को कहा था कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार अपने मौजूदा कार्यकाल में ही ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लागू करेगी।
प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने के अवसर पर संवाददाताओं को संबोधित करते हुए शाह ने कहा, ‘‘हमारी योजना इसी सरकार के कार्यकाल के दौरान ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की प्रणाली लागू करने की है।’’
पिछले महीने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की जोरदार वकालत की थी। तब पीएम मोदी ने कहा था कि बार-बार चुनाव होने से देश की प्रगति बाधित हो रही है। पीएम मोदी ने लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में कहा था, “देश को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के लिए आगे आना होगा।” ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ भाजपा द्वारा लोकसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में किए गए प्रमुख वादों में से एक है।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने इस साल मार्च में पहले कदम के तौर पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की थी। समिति ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराने की भी सिफारिश की थी।
इसके अलावा, विधि आयोग 2029 से सरकार के सभी तीन स्तरों – लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं और पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश कर सकता है। यह सदन में अविश्वास प्रस्ताव पारित होने या त्रिशंकु सदन की स्थिति में एक संयुक्त सरकार के प्रावधान की भी सिफारिश कर सकता है।
कोविंद समिति ने एक साथ चुनाव कराने की व्यवस्था लागू करने के लिए कोई समय-सीमा तय नहीं की। इसने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की, जिनमें से अधिकांश के लिए राज्य विधानसभाओं की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी। हालाँकि, इसके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयकों की आवश्यकता होगी जिन्हें संसद द्वारा पारित किया जाना होगा।