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एक मामले पर न्यायिक मजिस्ट्रेट के दो आदेश

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प्रयागराज, 09 अक्टूबर (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाजियाबाद के जिला न्यायाधीश को यह जांच करने का आदेश दिया है कि मानहानि के एक मामले में दो विरोधाभासी आदेश ऑनलाइन कैसे अपलोड किए गए। इसकी भी जांच करें कि किन परिस्थितियों में सम्बंधित न्यायालय के कर्मचारियों ने वेबसाइट पर अहस्ताक्षरित मसौदा आदेश अपलोड किए हैं।

कोर्ट ने कहा कि सम्बंधित अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के जो एक युवा मजिस्ट्रेट है, उनके लम्बे करियर को ध्यान में रखते हुए मैं कोई प्रतिकूल आदेश पारित नहीं कर रहा हूं।

न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की कोर्ट ने यह आदेश पारुल अग्रवाल की अर्जी पर दिया। सम्बंधित अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वर्तमान में अब एक अलग जिले में तैनात हैं। उनके खिलाफ कार्रवाई करने से कोर्ट ने परहेज किया, जबकि अदालत ने पाया कि उन्होंने सावधानी नहीं बरती थी और सम्बंधित कर्मचारियों के खिलाफ जांच भी शुरू नहीं की थी।

गाजियाबाद के रहने वाले पति-पत्नी ने आवेदक के खिलाफ मानहानि का आरोप लगाते हुए कम्प्लेन फाइल किया था। ट्रायल कोर्ट ने 13 फरवरी को कम्प्लेन पर एक ही दिन में दो आदेश पारित कर दिए। पहले आदेश में मानहानि की शिकायत खारिज कर दी गई थी। जबकि दूसरे आदेश में आरोपी को मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया गया था। इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।

आवेदक के वकील ने इस सम्बंध में पूरी जानकारी कोर्ट को दी। कोर्ट को बताया कि जिस आदेश से शिकायत खारिज की गई थी, उस पर हस्ताक्षर नहीं थे। जबकि जिस आदेश से अभियुक्त को बुलाया गया था, वह हस्ताक्षरित आदेश था।

न्यायालय ने मजिस्ट्रेट से स्पष्टीकरण मांगा था। जवाब में न्यायिक अधिकारी ने बिना शर्त माफी मांगी और बताया कि उनके न्यायालय के कर्मचारियों ने अनजाने में उनकी सहमति के बिना एक अहस्ताक्षरित और मसौदा आदेश अपलोड कर दिया था। मामले के विशिष्ट तथ्यों पर विचार करते हुए न्यायालय ने दोनों आदेशों को रद्द कर दिया। निर्देश दिया कि बिना हस्ताक्षर वाले आदेशों को कार्यवाही का हिस्सा नहीं माना जाएगा।

कोर्ट ने मामले को नए सिरे से निर्णय लेने के लिए पुनः ट्रायल कोर्ट को भेज दिया गया। साथ ही तीन महीने के भीतर कानून के अनुसार नया आदेश पारित करने का आदेश दिया।