कानपुर,11 नवम्बर(हि.स.)। ऊसर भूमि में गेहूं उत्पादन के लिए वैज्ञानिक विधि से बुआई करने से किसानों को अधिक लाभ होगा। ऐसी भूमि में उचित नमी पर जुताई करें और मृदा परीक्षण की संस्तुति के आधार पर 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर का अवश्य प्रयोग करना चाहिए। यह जानकारी सोमवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अनिल सचान ने दी।
उन्होंने बताया कि भारत में लगभग 6.73 मिलियन हेक्टेयर भूमि लवणीय तथा क्षारीय से प्रभावित है। जिसमें 3.77 मिलियन हेक्टेयर क्षारीय और 2.96 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र लवणीय है। उत्तर प्रदेश में 13.69 लाख हेक्टेयर लवण तथा क्षार से प्रभावित है, जिसमें मुख्य रूप से कानपुर नगर, कानपुर देहात, कन्नौज, इटावा, औरैया, उन्नाव, फर्रुखाबाद, कन्नौज,मैनपुरी सहित कई जनपद लवण तथा क्षार से प्रभावित है।
उन्होंने बताया कि इन भूमियों में लवण सहनशील गेहूं की प्रजातियां एवं नवीनतम तकनीकों के संयोजन से उत्पादन में वृद्धि कर खाद्य सुरक्षा को सतत रूप से स्थाई करने में महत्वपूर्ण योगदान होगा। उसर भूमि में हमेशा उचित नमी पर ही जुताई करें तथा बड़े-बड़े ढेलों को भुरभुरा कर दें तथा मृदा परीक्षण की संस्तुति के आधार पर 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर अवश्य प्रयोग करें।
मृदा वैज्ञानिक डॉ खलील खान ने बताया कि ऊसर भूमियों में बीज का जमाव कम होता है। अतः संस्तुति मात्रा से सवा गुना ज्यादा अर्थात 115 से 120 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से अवश्य प्रयोग करना चाहिए। बीज का शोधन कार्बेंडाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधन करने के बाद किसान भाई बुवाई करें।
डॉक्टर खान ने किसान भाइयों को सलाह दी है कि वह उसर भूमियों में गेहूं की बुवाई 20 नवंबर तक अवश्य कर दें। बुवाई के दिनों में औसत तापमान 20 डिग्री सेल्सियस उत्तम होता है । बीज 5 सेंटीमीटर से अधिक गहराई पर न डालें। उसर भूमियों हेतु गेहूं की प्रजातियां की आर एल 210 एवं के आर एल 213 सर्वोत्तम है। उन्होंने बताया कि इन प्रजातियों का चयन कर किसान भाई उसर भूमियों में बुवाई कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।