प्रयागराज, 21 सितम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निजी आर्थिक लाभ के लालच में हासिए पर बैठे समाज के कमजोर लोगों की सुरक्षा के लिए बने एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग को गम्भीरता से लेते हुए राज्य सरकार को निगरानी तंत्र विकसित करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा कि जब तक तंत्र विकसित नहीं हो जाता, तब तक एफआईआर दर्ज करने से पहले घटना व आरोप का सत्यापन किया जाए ताकि वास्तविक पीड़ित को ही सुरक्षा व मुआवजा मिल सके तथा झूठी शिकायत कर सरकार से मुआवजा लेने वालों के खिलाफ धारा 182 (अब धारा 214) में कार्यवाही कर दंडित किया जा सके।
कोर्ट ने कहा कि सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले कानून का दुरुपयोग न्याय प्रणाली पर संदेह व जन विश्वास को नुकसान पहुंचाता है। इसलिए एफआईआर का सत्यापन जरूरी है। इसके लिए पुलिस व न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने झूठी शिकायत कर सरकार से लिया गया 75 हजार रुपये का मुआवजा सरकार को लौटाते हुए दोनों पक्षों में समझौते की पुष्टि के कारण अपर सत्र न्यायाधीश-विशेष अदालत में चल रही एससी-एसटी एक्ट की केस कार्यवाही रद्द कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने बिहारी व दो अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
मालूम हो कि थाना कैला देवी संभल में दर्ज एससी-एसटी एक्ट की एफआईआर पर पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की। सरकार ने पीड़ित को 75 हजार रुपये मुआवजा दिया। बाद में दोनों पक्षों में समझौता हो गया तो आपराधिक केस रद्द करने के लिए याचिका की गई। कोर्ट ने शिकायतकर्ता को तलब कर सरकार से लिया मुआवजा वापस करने का आदेश दिया। जिला समाज कल्याण अधिकारी के नाम डिमांड ड्राफ्ट डीएम को जमा कर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया गया।
कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि संज्ञेय व असंज्ञेय दोनों अपराध को समझौते से समाप्त किया जा सकता है। इसलिए पक्षकारों के बीच समझौते को सही माना और आदेश दिया कि शेष बकाया मुआवजा 25 हजार रुपये का भुगतान न किया जाए। शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट में आने पर कहा कि गांव वालों के उकसाने पर उसने झूठी रिपोर्ट लिखाई थी। भविष्य में सतर्क रहेगा।
कोर्ट ने कहा कि यह एक्ट पीड़ित कमजोर तबके को तुरंत न्याय देने का साधन है लेकिन कई मामलों में पता चला है कि सरकार से मुआवजा लेने के लिए झूठे केस दर्ज हो रहे हैं।
कोर्ट ने कहा कि झूठा केस दर्ज कर सरकारी मुआवजा लेने वाले की जवाबदेही तय की जाए और उसे दंडित किया जाए। साथ ही निगरानी तंत्र विकसित किया जाए ताकि सुरक्षा प्रदान करने के लिए बने कानून का दुरुपयोग न हो सके और वास्तविक पीड़ित को राहत मिल सके।
कोर्ट ने कहा कि झूठे मामले वास्तव में हुई घटना को चोट पहुंचा रहे हैं। न्याय प्रक्रिया पर संदेह पैदा कर रहे हैं। लोगों का भरोसा खत्म कर रहे हैं, जिस पर रोक लगनी चाहिए। कोर्ट ने आदेश की प्रति सभी जिला जजों व डीजीपी को भेजने का निर्देश दिया है।