माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सकट चौथ का व्रत किया जाता है, जो भगवान गणेश को समर्पित है। माताएं इस दिन अपने संतान के सुख और कल्याण के लिए व्रत करती हैं। इस वर्ष सकट चौथ का व्रत 17 जनवरी 2025 को रखा जाएगा। इस दिन माताएं निर्जला व्रत करती हैं और शाम को चंद्रमा को देखकर अपना व्रत खोलती हैं। चंद्रमा की पूजा का इस व्रत में विशेष महत्व है, और भगवान गणेश को तिल से बने तिलकूट का भोग भी अर्पित किया जाता है, इसलिए इसे तिलकुटा चौथ भी कहा जाता है।
सकट चौथ की कथा:
एक बार एक शहर में एक गरीब देवरानी और एक अमीर जेठानी रहती थीं। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काटकर बेचता था, और उसे परिवार का खर्च चलाने के लिए जेठानी के घर काम करना पड़ता था। देवरानी हमेशा भगवान गणेश की पूजा करती थी। माघ महीने में सकट चौथ का व्रत रखकर उसने तिल और गुड़ से तिलकुट बना लिया, क्योंकि उसके पास पैसे नहीं थे। उसने पूजा की और संकल्प लिया कि शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलेगी।
शाम को जब देवरानी ने जेठानी के घर खाना बनाया, तब जेठानी के व्रत के कारण किसी ने खाना नहीं खाया। जब देवरानी ने जेठानी से खाना मांगा, तो उसने कहा कि आज तो किसी ने भी खाना नहीं खाया, इसलिए तुम्हें नहीं दे सकती। इससे देवरानी बहुत दुखी हुई और भूखी ही घर लौट गई। उसके बच्चे भी घर पर भूखे थे, और जब उन्हें पता चला कि कुछ नहीं मिला, तो वे रोने लगे। देवरानी भगवान गणेश को याद करती हुई सो गई।
उस रात सकट माता बुढ़िया के रूप में देवरानी के सपने में आईं और भोजन मांगा। देवरानी ने कहा कि उसके पास कुछ नहीं है, लेकिन पूजा का बचा हुआ तिलकुट है। सकट माता ने तिलकुट खाया और फिर कहा कि उन्हें निपटाई लगी है। देवरानी ने उन्हें कहा कि जहां चाहें, वहीं निपट लें। सुबह देवरानी ने देखा कि उसका पूरा घर हीरों और मोतियों से भरा हुआ था।
जेठानी ने जब सुना कि देवरानी का घर इतना धन्य हो गया है, तो उसने भी वही करने का सोचा। उसने भी सकट चौथ के दिन तिलकुट बनाया, लेकिन जब वह सपना में सकट माता को आमंत्रित किया, तो सकट माता ने उसके महल में बदबू और गंदगी छोड़ दी।
प्रार्थना:
हे सकट माता, जैसे आपने देवरानी पर कृपा की, वैसे ही सब पर कृपा करें।