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मायावती: मुश्किल दौर के बावजूद वापसी की ताकत रखने वाली नेता

Kalayan Singh 1736914949663 1736

उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती का कद और उनकी पार्टी बसपा की ऐतिहासिक भूमिका किसी से छिपी नहीं है। चार बार मुख्यमंत्री रहीं मायावती आज अपने सबसे चुनौतीपूर्ण राजनीतिक दौर से गुजर रही हैं। वर्तमान में यूपी विधानसभा में बसपा के पास केवल एक विधायक है, जबकि एक समय वह पूर्ण बहुमत की सरकार चला चुकी हैं। लोकसभा में पार्टी का कोई प्रतिनिधि नहीं है। इसके बावजूद, मायावती और उनकी पार्टी में आज भी वह क्षमता है, जो न केवल वापसी कर सकती है, बल्कि चुनावी परिणामों को भी निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकती है।

मायावती का राजनीतिक सफर और समीकरण साधने की कला

मायावती ने अपनी राजनीति में दलित स्वाभिमान को केंद्र में रखते हुए सत्ता का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने न केवल दलितों का मजबूत जनाधार तैयार किया, बल्कि भाजपा जैसे वैचारिक रूप से भिन्न दलों के साथ गठबंधन कर सत्ता तक पहुंच बनाई।

भाजपा और बसपा का गठबंधन: एक जटिल रिश्ता

  1. 1995 का गठबंधन:
    • मायावती ने पहली बार भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री पद संभाला।
    • यह गठबंधन लंबे समय तक नहीं चला।
  2. 1997 का गठबंधन:
    • छह महीने के समझौते के तहत सत्ता साझा करने का करार हुआ।
    • मायावती ने सीएम पद छोड़ने से इनकार कर दिया, जिससे गठबंधन टूट गया।
    • कल्याण सिंह ने बागियों के साथ सरकार बना ली, लेकिन भाजपा के भीतर इससे खटास बढ़ी।

अटल बिहारी वाजपेयी और कल्याण सिंह के बीच विवाद

  • 1999 लोकसभा चुनाव:
    • यूपी के सीएम रहते कल्याण सिंह ने कहा, “वाजपेयी पहले सांसद बनें, फिर पीएम बनने की सोचें।”
    • अटल जी नाराज हुए, और यह विवाद दोनों नेताओं के बीच दरार का कारण बना।
    • 1999 के चुनाव में भाजपा को केवल 29 सीटें मिलीं, लेकिन वाजपेयी लखनऊ से जीत गए।
    • आरोप लगे कि कल्याण सिंह ने मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर भाजपा को नुकसान पहुंचाया।

अटल बिहारी वाजपेयी का बड़ा फैसला

  • वाजपेयी ने कल्याण सिंह को सीएम पद से हटाने की ठानी।
  • लालकृष्ण आडवाणी ने कल्याण सिंह के पक्ष में तर्क दिए, लेकिन वाजपेयी अड़े रहे।
  • अंततः राम प्रकाश गुप्ता को सीएम बनाया गया।
  • इस फैसले ने कल्याण सिंह और भाजपा के रिश्तों में स्थायी दरार डाल दी।

मायावती के रणनीतिक दांव और भाजपा के साथ समीकरण

  • मायावती ने भाजपा के साथ गठजोड़ का फायदा उठाते हुए अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत की।
  • हालांकि, समय-समय पर उनके और भाजपा के बीच तनाव भी देखने को मिला।
  • मायावती की यह खासियत रही है कि वह चुनावी समीकरणों को अपने पक्ष में करने की कला में माहिर हैं।

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पर मायावती का प्रभाव

  • मायावती की उपस्थिति से यूपी में सियासी समीकरण बदलते हैं।
  • 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने भले ही कमजोर प्रदर्शन किया, लेकिन उनके वोट शेयर ने भाजपा और सपा के लिए बड़ी चुनौतियां खड़ी कीं।
  • कांग्रेस को उम्मीद है कि मायावती के प्रभाव से भाजपा और सपा का वोट बैंक बंटेगा, जिससे कांग्रेस को फायदा मिल सकता है।

क्या बसपा वापसी कर सकती है?

  • चुनौतियां:
    • कमजोर संगठन
    • घटता जनाधार
    • लोकसभा और विधानसभा में खराब प्रदर्शन
  • संभावनाएं:
    • दलित वोट बैंक पर मजबूत पकड़
    • राजनीतिक समीकरण साधने की कुशलता
    • मायावती की करिश्माई छवि