पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद उनके स्मारक निर्माण को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। दिल्ली के वरिष्ठ वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने डॉ. सिंह के कार्यकाल के दौरान हुए कथित घोटालों और विवादास्पद फैसलों का हवाला देकर उनके सम्मान और स्मारक निर्माण का विरोध किया है।
उपाध्याय की दलीलें: क्यों हो रहा विरोध?
- घोटालों का आरोप:
उपाध्याय ने मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हुए कथित 10 लाख करोड़ रुपये के घोटालों का जिक्र किया, जिनमें:- कॉमनवेल्थ घोटाला: ₹70,000 करोड़।
- 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला: ₹1,76,000 करोड़।
- अन्य कई वित्तीय अनियमितताएं।
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा अधिनियम (2004):
- इसे संविधान के खिलाफ बताते हुए, उपाध्याय ने आरोप लगाया कि इसका उद्देश्य एक खास समुदाय को लाभ पहुंचाना था।
- इसके जरिए स्कूलों और कॉलेजों को अल्पसंख्यक दर्जा देकर तुष्टिकरण का आरोप लगाया।
- अल्पसंख्यक मंत्रालय का गठन (2006):
- उपाध्याय का दावा है कि यह मंत्रालय केवल तुष्टिकरण और वोट बैंक राजनीति के लिए बनाया गया।
- उन्होंने इसे गरीबों के कल्याण के लिए बने सामाजिक न्याय मंत्रालय की जगह राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बताया।
- एफसीआरए कानून (2010):
- आरोप लगाया गया कि इस कानून ने विदेशी फंडिंग के जरिए भारत विरोधी ताकतों, माओवादियों, और जिहादी संगठनों को बढ़ावा दिया।
- राइट टू एजुकेशन एक्ट संशोधन (2012):
- मदरसों को इस कानून के दायरे से बाहर कर दिया गया, जिसके चलते उनके शिक्षण और प्रशासन की निगरानी नहीं हो सकती।
- यह कदम जमीयत उलेमा-ए-हिंद और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के दबाव में उठाने का आरोप है।
सरकार का रुख:
केंद्र सरकार ने डॉ. मनमोहन सिंह के सम्मान में एक स्मारक बनाने की घोषणा की है। इसके लिए स्थान का चयन किया जा रहा है।
क्या है विवाद का असर?
यह मामला केवल एक स्मारक निर्माण का नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक और वैचारिक मतभेदों का प्रतीक बन गया है।
- समर्थन: डॉ. सिंह के समर्थक उनके आर्थिक सुधारों और देश की प्रगति में योगदान को आधार बनाकर उनके सम्मान का समर्थन कर रहे हैं।
- विरोध: आलोचक उनके कार्यकाल में हुए विवादित फैसलों और घोटालों का हवाला देकर सवाल उठा रहे हैं।