उत्तर प्रदेश 2014 के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए एक राजनीतिक गढ़ बनकर उभरा। हालांकि, 2024 का लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए उतना अनुकूल नहीं रहा, जितनी उम्मीद की जा रही थी। समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस के पीडीए गठबंधन (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) ने भाजपा को सिर्फ 33 लोकसभा सीटों तक सीमित कर दिया। लेकिन साल के अंत तक, भाजपा ने विधानसभा उपचुनावों में जीत दर्ज करके अपनी राजनीतिक पकड़ को साबित किया।
लोकसभा चुनाव 2024: भाजपा को बड़ा झटका
भाजपा, जिसने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में बड़ी सफलता हासिल की थी, 2024 में सपा-कांग्रेस गठबंधन के सामने कमजोर पड़ी। इस गठबंधन ने राज्य में 37 सीटें जीतकर भाजपा को चार सीटों से पीछे छोड़ दिया।
भाजपा के लिए इस हार की खास वजह रही पीडीए गठबंधन का व्यापक प्रभाव। यह रणनीति पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों को एक मंच पर लाने में सफल रही। हालांकि, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, जो किसी भी सीट पर जीत दर्ज करने में नाकाम रही।
विधानसभा उपचुनावों में भाजपा की वापसी
नवंबर में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनावों ने भाजपा को राहत दी। नौ सीटों में से सात पर भाजपा ने जीत दर्ज की। इनमें मुस्लिम बहुल कुंदरकी और ओबीसी-दलित बहुल कटेहरी जैसी सीटें शामिल थीं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस जीत को भाजपा की रणनीति का परिणाम बताया और ‘कुंदरकी-कटेहरी मॉडल’ का जिक्र करते हुए कार्यकर्ताओं को भविष्य में बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित किया।
राम मंदिर उद्घाटन और सांप्रदायिक तनाव
2024 में उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी घटनाओं में राम मंदिर का भव्य उद्घाटन शामिल था। अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद भाजपा ने इसे अपने चुनाव प्रचार का हिस्सा बनाया। हालांकि, इसके कुछ महीने बाद ही मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को सपा से हार का सामना करना पड़ा, जो एक बड़ा झटका था।
नवंबर में संभल में एक ऐतिहासिक मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान हुई हिंसा ने चार लोगों की जान ले ली। इस घटना ने राज्य में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नारा: ‘बंटेंगे तो कटेंगे’
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दिया गया नारा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ भाजपा के चुनाव प्रचार का मुख्य हिस्सा बना। इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का समर्थन मिला और यह नारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘एक हैं तो सुरक्षित हैं’ के संदेश के साथ हिंदू एकता का प्रतीक बन गया।
सामाजिक घटनाएं: हाथरस भगदड़ और झांसी मेडिकल कॉलेज की घटना
जुलाई में हाथरस भगदड़ में 121 लोगों की मौत हुई, जिससे राज्य प्रशासन पर सवाल उठे। वहीं, नवंबर में झांसी मेडिकल कॉलेज के नवजात वार्ड में आग लगने से 10 नवजातों की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।
विवादित टिप्पणियां और समान नागरिक संहिता का मुद्दा
दिसंबर में प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के एक कार्यक्रम में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर यादव ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) और ‘बहुमत’ पर टिप्पणी की। इस पर विपक्ष ने कड़ी आलोचना की। हालांकि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और विहिप ने न्यायमूर्ति के विचारों का समर्थन किया।
बसपा का पतन और मायावती का बड़ा फैसला
2024 का साल बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के लिए बेहद निराशाजनक रहा। विधानसभा उपचुनावों में हार के बाद मायावती ने घोषणा की कि जब तक चुनाव आयोग ‘फर्जी मतदान’ रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाता, उनकी पार्टी उपचुनावों में हिस्सा नहीं लेगी।
बहराइच और सुल्तानपुर में सांप्रदायिक तनाव
बहराइच में दुर्गा पूजा जुलूस के दौरान हिंसा में एक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी गई। सुल्तानपुर में डकैती के दौरान आरोपियों को पुलिस मुठभेड़ में मार गिराया गया। विपक्ष ने इसे जाति-आधारित हत्या का मामला बताया, जिसे सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया।
सारांश: कभी खुशी, कभी गम
2024 का साल उत्तर प्रदेश के लिए राजनीतिक उठा-पटक और सामाजिक हलचलों का गवाह रहा। भाजपा, सपा-कांग्रेस गठबंधन और अन्य दलों ने अपनी-अपनी जीत और हार के अनुभव से सीखा। आने वाले चुनावों में यह साल राज्य की राजनीति को नई दिशा देने वाला साबित हो सकता है।