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Govardhan Puja 2024: गाय के गोबर के बिना क्यों अधूरी है गोवर्धन पूजा, कैसे शुरू हुई परंपरा?

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गोवर्धन पूजा 2024 गोबर महत्व: गोवर्धन पूजा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने के रूप में मनाया जाता है। इस पूजा में गाय के गोबर के इस्तेमाल का विशेष महत्व है। गोवर्धन पूजा गाय के गोबर के बिना अधूरी मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि गाय के गोबर को पवित्र माना जाता है। इसका इस्तेमाल घरों की सफाई, पूजा और देवताओं को चढ़ाने के लिए किया जाता है। जब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया, तो उन्हें यह गाय के गोबर के रूप में भी दिखाई दिया। इसलिए गोवर्धन पूजा में गाय के गोबर के इस्तेमाल का विशेष महत्व है।

गाय के गोबर को प्रकृति का अहम हिस्सा माना जाता है। गोवर्धन पर्वत भी प्रकृति का ही एक रूप है। इसलिए गाय के गोबर का इस्तेमाल करके प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। खेतों में गोबर का इस्तेमाल खाद के तौर पर किया जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर कृषि के महत्व को दर्शाया जाता है।

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 1 नवंबर को शाम 6:16 बजे से शुरू होकर 2 नवंबर को रात 8:21 बजे समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार गोवर्धन पूजा 2 नवंबर 2024, शनिवार को की जाएगी। इस दिन गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त 2 नवंबर को शाम 6:30 बजे से 8:45 बजे तक है। गोवर्धन पूजा के लिए आपको 2 घंटे 45 मिनट का समय मिलेगा।

इन बातों का रखें ध्यान

गोवर्धन पूजा गाय के गोबर से बने गोवर्धन पर्वत की पूजा के बिना अधूरी मानी जाती है। गोवर्धन पूजा के दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है और उसके पास भगवान कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है। ऐसा माना जाता है कि गोबर से बना पर्वत घर की सभी समस्याओं का समाधान करता है और सुख-समृद्धि का प्रतीक है।

  • गोवर्धन पूजा के दिन भगवान कृष्ण को अन्नकूट और छप्पन भोग लगाया जाता है।
  • गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा की जाती है।
  • परिक्रमा करते समय मुरमुरे और मिठाई का भोग लगाया जाता है।
  • गोवर्धन पूजा हमेशा घर पर परिवार, रिश्तेदारों या पड़ोसियों के साथ की जानी चाहिए।
  • गोवर्धन पूजा के दिन भगवान श्री कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है।

यह परंपरा कैसे शुरू हुई?

गोवर्धन पूजा की परंपरा भगवान कृष्ण से जुड़ी एक पौराणिक कथा से जुड़ी है। जब इंद्रदेव ने ब्रजवासियों पर भारी वर्षा करके उन्हें परेशान किया, तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी। इसी घटना की याद में गोवर्धन पूजा की जाती है। गोबर से गोवर्धन पर्वत का निर्माण इसी घटना का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि भगवान कृष्ण ने प्रकृति की शक्ति का उपयोग करके ब्रजवासियों की रक्षा की थी। तब से यह परंपरा चली आ रही है।

गोवर्धन पूजा के दिन गाय के गोबर से एक छोटा सा पर्वत बनाया जाता है और उसे भगवान कृष्ण के रूप में पूजा जाता है। घरों में गोबर के दीये जलाकर रोशनी की जाती है। कुछ लोग अपने शरीर पर गोबर का लेप लगाते हैं। गाय के गोबर से तरह-तरह की कलाकृतियाँ बनाकर उनकी पूजा की जाती है।