आधार कार्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि आधार कार्ड उम्र साबित करने के लिए वैध दस्तावेज नहीं है। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा कि आधार कार्ड का इस्तेमाल पहचान स्थापित करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन इसे जन्मतिथि का प्रमाण नहीं माना जाता है।
कोर्ट ने गुरुवार को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वाले व्यक्ति को मुआवजा देने के लिए उसकी उम्र निर्धारित करने के लिए आधार कार्ड को स्वीकार किया गया था।
स्कूल प्रमाण पत्र को प्राथमिकता दी गई
न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 94 के तहत मृतक की आयु स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र में उल्लिखित जन्म तिथि से निर्धारित की जानी चाहिए।
पीठ ने कहा, “हमने पाया कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ने अपने परिपत्र संख्या 8/2023 के माध्यम से, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी 20 दिसंबर, 2018 के कार्यालय ज्ञापन के संदर्भ में कहा है कि आधार कार्ड का उपयोग पहचान स्थापित करने के लिए किया जा सकता है लेकिन यह जन्म तिथि का प्रमाण नहीं है।”
मामला 2015 में हुए एक दुर्घटना से जुड़ा है।
सर्वोच्च न्यायालय ने दावेदार-अपीलकर्ताओं की दलील को स्वीकार कर लिया और मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) के निर्णय को बरकरार रखा, जिसने मृतक की आयु की गणना उसके स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र के आधार पर की थी।
सर्वोच्च न्यायालय 2015 में सड़क दुर्घटना में मारे गए एक व्यक्ति के परिवार द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रहा था। एमएसीटी, रोहतक ने 19.35 लाख रुपये का मुआवजा दिया था, जिसे उच्च न्यायालय ने घटाकर 9.22 लाख रुपये कर दिया था, क्योंकि उसने पाया कि एमएसीटी ने मुआवजा निर्धारित करते समय आयु गुणक को गलत तरीके से लागू किया था।
आधार कार्ड और स्कूल सर्टिफिकेट की उम्र में अंतर
हाईकोर्ट ने मृतक के आधार कार्ड के आधार पर उसकी उम्र 47 साल आंकी थी। परिवार ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने मृतक की उम्र आधार कार्ड के आधार पर तय करके गलती की है, क्योंकि अगर उसकी उम्र की गणना उसके स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट के आधार पर की जाए तो मौत के समय उसकी उम्र 45 साल थी।