
मॉडर्न किचन में स्टील, नॉन-स्टिक और प्रेशर कुकर का चलन आम हो गया है, लेकिन आयुर्वेद और विज्ञान एक बार फिर परंपरागत मिट्टी के बर्तनों के उपयोग को प्रोत्साहित कर रहे हैं। मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाना न केवल सेहत के लिए फायदेमंद है, बल्कि इसका स्वाद भी अलग ही अनुभव देता है। आइए जानते हैं मिट्टी के बर्तनों के पीछे छिपे वैज्ञानिक, स्वास्थ्य और पारंपरिक कारण।
आयुर्वेद का नजरिया: पोषण का संरक्षण
- आयुर्वेद के अनुसार, धीमी आंच पर खाना पकाना सबसे उत्तम तरीका है, और मिट्टी के बर्तन यही काम करते हैं।
- मिट्टी में खाना धीरे-धीरे पकता है, जिससे पोषक तत्व नष्ट नहीं होते।
- प्रेशर कुकर में 87% तक न्यूट्रिएंट्स खत्म हो जाते हैं, जबकि मिट्टी के बर्तनों में ये लगभग 100% तक सुरक्षित रहते हैं।
- मिट्टी से मिलने वाले पोषक तत्व प्रोटीन अवशोषण को बढ़ाकर बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं।
सेहत के साथ स्वाद का भी ध्यान
- मिट्टी के बर्तनों में पकाया गया खाना न केवल स्वास्थ्यवर्धक होता है, बल्कि इसका स्वाद भी लाजवाब होता है।
- इसमें बनी दाल, सब्जी, चाय या दूध में सौंधी खुशबू और देसी जायका आता है जो स्टील या एल्युमिनियम के बर्तनों में नहीं मिल पाता।
पोषण के प्राकृतिक स्रोत
- मिट्टी के संपर्क से खाना 18 प्रकार के जरूरी माइक्रोन्यूट्रिएंट्स से भरपूर होता है।
- इसके विपरीत, एल्युमिनियम, कांसे या पीतल के बर्तन कई पोषक तत्वों को खत्म कर देते हैं।
- मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाना टीबी, डायबिटीज, अस्थमा और अन्य बीमारियों से बचाव में सहायक हो सकता है।
ट्रेडिशन और सजावट में भी अहम भूमिका
- आजकल मिट्टी के बर्तन सिर्फ खाना पकाने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि डाइनिंग टेबल की शोभा भी बढ़ाते हैं।
- कलाकारी वाले मिट्टी के बर्तन देसी सौंदर्य और संस्कृति की झलक देते हैं।
- कुल्हड़ में चाय या मटकी का ठंडा पानी आज भी लोगों को अपनी जड़ों से जोड़ता है।
मॉडर्न किचन में भी इस्तेमाल के अनुकूल
- अब मॉडर्न डिज़ाइन के मिट्टी के बर्तन माइक्रोवेव-सुरक्षित भी होते हैं।
- हालांकि इन्हें तेज आग पर सीधे नहीं रखना चाहिए क्योंकि इनकी हीट टॉलरेंस लिमिट कम होती है।
- मिट्टी की हांडी में दही जमाने से उसका स्वाद और गुणवत्ता बढ़ जाती है, वहीं दूध रखने से उसमें सौंधी महक आ जाती है
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