
हमारे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि एक पापी ग्रह है, जो जातक की कुंडली में अशुभ होते ही उसे चोट पहुंचाता है। शनिदेव को ‘कर्मफल दाता’ माना गया है, मनुष्य जो भी कर्म करेगा उसका भुगतान शनिदेव उससे करवाते हैं। व्यक्ति के गलत कार्यों के फलस्वरूप उसे पीड़ा भोगनी पड़ती है। शनिदेव इस पीड़ा देने के माध्यम मात्र होते हैं।
# शनि की पीड़ा से मुक्ति के लिए लोहे का छल्ला कारगर होता है. लौह धातु पर शनिदेव का आधिपत्य होता है, इसलिए लोहे का छल्ला शनि देव की शक्तियों को नियंत्रित करने के काम आता है परन्तु यह छल्ला सामान्य लोहे का नहीं होन चाहिए। यह घोड़े की नाल या नाव की कील का बना हुआ होना चाहिए।
# शनि की अनिष्टता निवारण के लिए शनिवार को शनिदेव के मंदिर में जाकर तेल चढ़ान चाहिए व दान करना चाहिए।
# शनि की कृपा पाने के लिए शनिवार को व्रत करनी चाहिए। अगर व्रत न कर सकें तो मांसाहार व मदिरापान नहीं करना चाहिए और संयमपूर्वक प्रभु स्मरण करना चाहिए।
# शनि स्तोत्र का पाठ करने से भी शनि देव को प्रसन्न करने किया जा सकता हैं। यह शनिदेव का सरलतम मंत्र है, इसे मात्र 11 बार अवश्य पढ़ना चाहिए।