दिल्ली विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद अब बीजेपी की नजर बिहार पर है, जहां अक्टूबर-नवंबर में चुनाव होने वाले हैं. भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का लक्ष्य 243 सदस्यीय विधानसभा में 225 से अधिक सीटें जीतना है। लेकिन बिहार की चुनावी लड़ाई किसी भी अन्य राज्य से बिल्कुल अलग है। वहां गठबंधन भी नए प्रकार का है और मुख्य चेहरे केंद्र की राजनीति से अलग हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा, वहीं महागठबंधन का चेहरा तेजस्वी यादव होंगे। पिछले तीन दशकों से बिहार की राजनीति में दो नेताओं का दबदबा रहा है। ये नेता हैं नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव।
बिहार में राजा और किंगमेकर दोनों हैं।
भले ही लालू यादव अब राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं हैं, लेकिन बिहार में उनका प्रभाव कम नहीं हुआ है। लालू की राजनीतिक विरासत को अब उनके बेटे तेजस्वी यादव बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं। नीतीश कुमार की बात करें तो वे दो दशक से बिहार के मुख्यमंत्री हैं। 2015 में उन्होंने कुछ महीनों के लिए पद छोड़ दिया और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया। इस दौरान नीतीश ने गठबंधन सहयोगी जरूर बदले हैं, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी उनके पास ही रही है। बिहार में राजा भी हैं, किंगमेकर भी हैं और गठबंधन का जादू भी है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बिहार की राजनीति भारत के किसी भी अन्य राज्य की तुलना में अधिक जटिल है।
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव में एक तरफ भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) होगा तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेतृत्व वाला महागठबंधन होगा। एनडीए में भाजपा के साथ जेडीयू, एलजेपी (रामविलास), हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा सेक्युलर (एचएएम) और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) शामिल हैं। दूसरी ओर, महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, वाम दल और विकासशील इंसान पार्टी शामिल हैं।
एनडीए का लक्ष्य 225 सीटें जीतना
हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली के बाद भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए का लक्ष्य आगामी बिहार चुनावों में भी अपनी जीत का सिलसिला बरकरार रखना है। दिल्ली में जीत से एनडीए का आत्मविश्वास और बढ़ गया है। दूसरी ओर, बिहार में हाल ही में हुए उपचुनावों में भी एनडीए ने अच्छा प्रदर्शन किया है। एनडीए ने 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में 225 सीटें जीतने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए चुनाव से पहले एकता और ताकत दिखाने के लिए रैलियां कर रहा है।
प्रत्येक जिले में संयुक्त बैठकें आयोजित करना
जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन ने जोर देकर कहा कि दिल्ली की जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की मजबूत एकता का संदेश देती है। एनडीए 225 सीटें जीतने की ओर अग्रसर है। बिहार में चुनाव से पहले एनडीए में शामिल दलों के नेता गठबंधन के सदस्यों के बीच एकता सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं। हर जिले में संयुक्त बैठकें आयोजित की जा रही हैं, जहां एनडीए के राज्य अध्यक्ष एक साथ जाकर एकता और दृढ़ संकल्प का संदेश दे रहे हैं। जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने पार्टी कार्यकर्ताओं से विपक्ष की वंशवादी राजनीतिक ताकतों का मुकाबला करने के लिए एकजुट मोर्चा बनाने का आग्रह किया।
बिहार में एनडीए बनाम महागठबंधन का टकराव
बिहार में एनडीए को राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन (राजद, कांग्रेस, वाम दल और वीआईपी) जैसे मजबूत प्रतिद्वंद्वी का सामना करना पड़ेगा। राजद नेता तेजस्वी यादव ने चुनाव से पहले ही जनता से कई वादे किए हैं, जिनमें ‘माई बहन मान योजना’ के तहत परिवार की महिला मुखिया को 2,500 रुपये प्रति माह और 200 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा भी शामिल है। उनके अन्य प्रमुख वादों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए मासिक पेंशन और युवाओं के लिए रोजगार सृजन के साथ-साथ पलायन पर रोक लगाने के उपाय शामिल हैं।
आरजेडी के आक्रामक प्रचार के बावजूद एनडीए बिहार में अपनी जीत के प्रति आश्वस्त है। वरिष्ठ भाजपा नेता तारकिशोर प्रसाद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग के लगभग दो दशक के प्रभावी शासन का हवाला देते हुए उम्मीद जताई कि बिहार में भाजपा-जदयू गठबंधन सत्ता में बना रहेगा। केंद्रीय मंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के नेता जीतन राम मांझी ने भी दिल्ली के नतीजों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, ‘दिल्ली तो झांकी है, बिहार अभी बाकी है………जय एनडीए।’
बिहार चुनाव पर केंद्रीय बजट का प्रभाव
जैसे-जैसे बिहार चुनाव प्रचार जोर पकड़ रहा है, राज्य का विकास एजेंडा भी केन्द्र में आ रहा है। इस वर्ष की शुरुआत में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिहार के बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अपने बजट में कई घोषणाएं की थीं। इसमें मखाना बोर्ड की स्थापना, ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे का निर्माण और पश्चिमी कोशी नहर जैसी प्रमुख परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता शामिल है।
इसके अतिरिक्त, सीतारमण ने बिहार में आईआईटी पटना का विस्तार करने और बिहार में राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी, उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान स्थापित करने की योजना की भी घोषणा की। ये ऐसे उपाय हैं जिन्हें मतदाताओं द्वारा पसंद किये जाने की उम्मीद है। एनडीए समर्थकों को उम्मीद है कि दिल्ली में जीत और केंद्रीय बजट में की गई घोषणाओं से राज्य में गठबंधन की स्थिति और मजबूत होगी।
क्या बिहार में भी एनडीए जीतेगी?
जैसे-जैसे बिहार में चुनाव नजदीक आ रहे हैं, भाजपा और एनडीए में उसके सहयोगी दल यहां भी अपनी हालिया सफलताओं को बरकरार रखने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। भाजपा दिल्ली में मिली जीत और पिछली जीतों से प्राप्त गति का लाभ उठाकर बिहार में भी एक और जीत हासिल करना चाहती है। 2025 के चुनाव के नतीजे बिहार और राष्ट्रीय स्तर पर एनडीए की स्थिति और केंद्र की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण होंगे। यह तो समय ही बताएगा कि एनडीए बिहार में भारी जीत हासिल कर पायेगा या नहीं। लेकिन बहुत कुछ दांव पर लगा है क्योंकि भाजपा देश के सबसे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्यों में से एक पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखना चाहती है।